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एवं वुच्चइ काल तुल्लए? काल तुल्लए गोयमा! एग समय ट्ठिईए पोग्गले एग समयस्स ट्रिईय स्स पोग्गलस्स कालओ तुल्ले, एगसमय ट्ठिईए पोग्गले एगसमय दिईय वइरित्तस्स कालओ णो तुल्ले एवं जाब दस समय ट्ठिईए ॥ नुल्ल संखेज समय टिईए एवं चेव तुल्ल असंखेज समय ढिईएवि एवं चेव ॥ से तेण?णं जाव काल तुल्लए ॥ ६ ॥ से केण?णं भंते ! एवं बुच्चइ- भवतुल्ले, ? भवतुले गोयमा ! णेरइए णेरइयस्स भवट्टयाए तुल्ले, णेरइए णेरइय वारत्तस्स भवट्ठयाए णो तुल्लए; तिरिक्ख जोणिए
एवं चेत्र ॥ एवं मणुस्सेवि ॥ एवं देवेवि ॥ से तेण?णं जाव भवतुल्ले ॥ ७ ॥ कहा ? अहो मौतम ! एक समय की स्थितिबाले पुद्गल से एक समय की स्थितिवाले पुद्गल काल से
तुल्य है. और इस से अन्य की साथ तुल्य नहीं है. ऐसे ही दो तीन यावत् दश, संख्यात व असंख्यात, Eसमय की स्थितिवाले पुद्गलों का जानना. अहो गौतम : इस कारन से काल तुल्य को काल तुल्य कहा।
गया है। अहो भगवन् ! भव तुल्य को भव तुल्य क्यों कहा? अहो गौतम : नारकी नारकी के
भव से तुल्य है और अन्य से तुल्य नहीं है ऐसे ही तिर्यंच, मनुष्य व देव का जानना. अहो गौतम !* 1 इस कारन से भव तुल्य को भव तुल्य कहा है ॥ ७ ॥ अहो भगवन् ! भाव तुल्य को भाव तुल्य क्यों ।।
पंचांग वहााव पण्णति (भगवती) सूत्र 138
48:02.चउदइवा शतक का सातवा उद्देशा'
भावार्थ
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