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अनुवादक-धालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी *
खंधस्स दव्वओ तुल्ले, संखेज पएसिए खंधे संखेज षएसिय वइरित्तस्स खंधरम दव्वओ णो तुल्ले, एवं तुल्ल असंखेज पएसिएवि ॥ एवं तुल्ल अणंत पएसिएवि ॥ से तेणटेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ दवतुलए ॥ ४ ॥ से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ खेत्त तुल्लए ? खत्त तुलए गोयमा ! एगपएसोगाढे, पोग्गले एगपएसोगाढस्स पोग्गलस्स खेत्तओ तुले, एगपएसोगाढ पोग्गले एगपएसोगाढ वइरित्तस्स पोग्गलस्स खत्तओ णो तुल्ले ॥ एवं जाव दसपएसोगाढे, तुल्ल संखेज पएसोगाढेवि॥एवं तुल्ल
असंखेज पएसोगाढेवि॥ से तेणटेणं जाव खत्त तुल्लए ॥ ५ ॥ से केण?णं भंते ! .. स्कंध द्रव्य से तुल्य है और संख्यात प्रदेशिक स्कंध अन्य की साथ तुल्य नहीं है ऐसे ही असंख्यात प्रदेशिक स्कंध का व अनंत प्रदेशिक स्कंध का जानना. अहो गौतम ! इस कारन से द्रव्य तुल्य कहा है। ॥४॥ अहो भगवन् ! क्षेत्र तुल्य को क्षेत्र तुल्य क्यों कहा? अहो गौतम ! एक प्रदेश अवगाह्य पुद्गल. एक प्रदेश अवगाह्य पुद्गल की साथ क्षेत्र से तुल्य है और इस से अन्य की साथ क्षेत्र से तुल्य नहीं है. ऐसे ही दो तीन यावत् दश, मंख्यात, व असंख्यात प्रदेश अवगाहित पदल का मानना. अहो गौतम इस कारन से क्षेत्र तुल्य को क्षेत्र तुल्य कहा है. ॥ ५ ॥ अहो भगवन् ! काल तुल्य को काल तुल्य
मायाजाबहादुर लाला मुखदव सहायजी ज्वालाप्रसादजी*
भावार्थ