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भवंति, से तेण?णं गोयमा ! एवं बच्चइ-जाव पासंति ॥ २ ॥ कइ विहेणं भंते ! है। तुल्लए पण्णत्ते ? गोयमा ! छविहे तुलए पण्णत्ते, तंजहा-दव्वतुल्लए, खेत्ततुल्लए, कालतुल्लए, भवतुल्लए, भाव तुल्लए, सट्ठाण तुलए, ॥ ३ ॥ से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ दव्य तुल्लए ? दव्व तुल्लए गोयमा! परमाणुपोग्गले परमाणुपोग्गलस्स दव्वओतुल्ले परमाणुपोग्गले परमाणुपोग्गल वइरित्तस्स दव्वओ णो तुल्ले, दुपदेसिए खंधे दुपदेसियस्स खंधस्स दलओ तुल्ले, दुपदेसिए खंधे दुपदेसिय वइरित्तस्स खंधस्स दवओ
णो तुल्ले, एवं जाव दसपएसिए । तुल्लसंखेज पएसिए खंधे, संस्लेज पएसियस्स। भावार्थमाप्तई है इससे वे अपने जैसे अर्थ जानते हैं व देखते हैं. ॥२॥ अहो भगवन् ! तुल्य के कितने भेद कहे हैं.
अहो गौतम ! तुल्य के छ भेद कहे हैं. १ द्रव्य तुल्य, २ क्षेत्र तुल्य, ३ काल तुल्य, ४ भव तुल्य ५ भाव .. तुल्य और ६ संठान तुल्य ॥ ३ ॥ अहो भगवन् ! द्रव्य तुल्य को द्रव्य तुल्य क्यों कहा ? अहो गौतम ! परमाणु पुद्गल से परमाणु पुद्गल तुल्य हैं, और परमाणु पुद्गल से व्यतिरिक्त द्विपदेशात्मक स्कंधतुल्य नहीं हैं. द्विपदेशात्मक स्कंध द्विपदेशात्मक स्कंध की साथ द्रव्य से तुल्य है और द्विपदेशात्मक स्कंध अन्य की साथ तुल्य नहीं है ऐसे ही यावत् दश प्रदेशिक स्कंधका जानना. संख्यात प्रदेशिक स्कंधसे संख्यात प्रदेशिक
पंचमांग विवाह पण्णत्ति (भगवती) मत्र 48
* वादहमा शतक का सातवा