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________________ शब्दार्थ 128* पंचमांग विवाह पण्णति ( भगवती ) मूत्र 48 महावीर भ० भगवन्त मो० गौतम को आ• आर्मपणकर ए. ऐसा बोले चि. चिरकाल से सं०। संबंधीत है मे० मुझ से गो० गौतम चि० चिरकाल से सं० प्रशंसा करता है मे० मेरी गो० गौतम नि.. चिरकाल स ५० परिचित है मे० मुझ से गो. गौतम चि० चिरकाल से जु० सेवाकी है मे० मेरी मो. + १९४३ गौतम चि० चिरकाल से अ० अनुमरता है मे० मुझे गो. गौतम चि. चिरकाल से अ० अनुकरण करता है मे० मुरा गो० गौतम अ० अनंतर दे० देवलोक में अ० अनंतर मा० मनुष्य का भ० भव में किं. क्या १० विशेष म० मरण का० काया का भे० भेद इ०. यहां चु० चाकर दो० दोनों तु. तुल्य है आमंतेत्ता, एवं वयासी-चिरसंसिट्रोसि मे गोयमा ! चिरसंथतोसि मे गोयमा ! म है चिरपरिचितोसि मे गोयमा ! चिरजुसिओसि मे गोयमा ! चिराणुंगओसिमे गोयमा! १ चिराणुवत्तीसिमे गोयमा ! अणंतरं देवलोए अगंतरं माणुस्सए भवे किं परं मरणकायस्स के गुणशील उद्यान में श्री श्रमण भगवंत महावीर स्वामी का उपदेश सुनकर परिषदा पीछी गइ. उस समय में गौतम स्वामी को केवल ज्ञान की प्राप्ति नहीं होने से खेदित हुए जानकर उन को संतुष्ट करने के लिये । श्री श्रवण भगांत महावीर स्वामी ने गौतम स्वामी को बोलाये और कहा कि अहो गौतम ! तुम्हारा मेरी साथ बहुत काल से संबंध है, तुमने बहुत काल से मेरी प्रशंसा की है, बहत काल से देखने आदि मे मेरी साथ परिचय है, बहुत काल से. सेवा करते तुम मेरे विश्वास पात्र बने हवे हो, बहुत काल से मेरी Maharana चउदया शतक का सातवा उद्दशा 488 भावार्थ .
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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