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48 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
रा राजगृह में जा० यावत् परिषदा ५० पीछीगइ गो० गौतमादि स० श्रमण भ. भगवन्त २० तहा जाव पाणओ अच्चुओ, णवरं जो जस्स परिवारो सो तस्स भाणियब्बो, पासाय उच्चत्तं जं सएस सएस कप्पेसु विमाणाणं उच्चत्त अहई विस्थ रो जाव अच्चयरस णवजोअण सयाई उर्दू उच्चत्तेणं, अद्धपंचमाई जोअण सयाई विक्खंभेणं, एत्थणं गोयमा ! अच्चुए देविंदे देवराया दसहि सामाणिय साहसीहिं जाव विहरइ ॥ ३ ॥ सेवं भंते भंतेत्ति ॥ चउहसम सयस्सय छट्ठो उद्दसो सम्मत्ता ॥ १४ ॥६॥ *
रायगिहे आव परिसा पडिगया, गोयमादि समणे भगवं महावीरे भगवं गोयमं कहना. प्रासादों की ऊंचाई अपने २ देवलोक जितनी कहना और चौडाइ उस से आधि कहना. सनकुमार व माहेन्द्र के ६०० योजन के प्रासाद ऊंचे हैं, ब्रह्म व लंसक के ७०० योजन के शुक्र व सहस्रार है के ८०० योजन के ऊंचे प्राणत व अच्युत के ९०० योजन के ऊंचे प्रासाद कहे हैं, यावत् अहो गौतम अच्युत देवेन्द्र दश हजार सामानिक देव व चालीस हजार आत्म रक्षक देव सहित दीव्य भोगोपभोग की। भोगते हुवे विचरते हैं. अहो भगवन् ! आप के वचन सत्य हैं. यह चौदहवा शतक का छ उद्देशा संपूर्ण हुवा ॥ १४ ॥ ६ ॥ छठे उद्देशे में इन्द्रों के भोगों का कथन किया. अब आगे तुल्य का अधिकार कहते हैं. राजगृह नगर :
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी.
भावार्थ
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