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488 पंचमांग विवाहपण्णत्ति (भगवती) मूत्र
मुंजमाणे विहरइ ॥ जाहेणं ईसाणे देविदे देवराया दिव्वाई जहा सक्के तहा ईसाणेवि जिरवसेसं ॥ ४ ॥ एवं सणंकुमारवि, णवरं पासाय वडिंसओ छजोअणसयाइं उर्दू उच्चत्तेणं तिणि जोअणसयाई विक्खंभेणं मणिपढिया तहेव अट्ट जोअणिया, तीसेणं मणिपेढियाए उवरि एत्थणं महेगं सीहासणं विउव्वइ सपरिचारं भाणियव्वं. तत्थणं सणंकुमारे देविंदे देवराया बावत्तरिए सामाणिय साहस्सीएहिं जाव चउहि बावत्तरीहिं आयरक्खदेव साहस्सीहिय, बहूहि सणंकुमार कप्पवा
सीहिं वेमाणिएहिं देवहिय सद्धिं संपरिवुडे महया जाव विहरइ ॥ एवं जहा सणंकुमारे करनेवाली ऐसी दो सेना महित अनेक प्रकार के नाट्य व गायन करते दीव्य भोग भोगवते हुवे रहते हैं. जैसे शकेन्द्र का कहा पैसे ही ईशानेन्द्र का जानना ॥४॥ सनत्कुमार का भी वैसे ही कहना परंतु इस में प्रामाद छ सो योजन के ऊंचे और तीन सो योजन के चौडे कहना. मणि पीठिका आठ योजन की कही. उस मणि पीठिका पर एक बड़ा सिंहासन की विकर्षणा करके वहां सनत्कुमार देवेन्द्र ७२ हजार सामानिक २८८९०० आत्म रक्षक और बहुत सनत्कुमारवासी देवों सहित परवरा हुवा यावत् रहता है. ऐसे ही* जैसे सनत्कुमार का कहा वैसे ही प्राणत तक का कहना परंतु परिवार वगैरह जिन को जितना होवे उतना
84 चउदहवा शतकका छठा
भावार्थ
उद्देशा