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शब्दार्थ |
देश से दे० दश उ. उपज को नहीं दे देशमे म. सर्व : उपजे नो नहीं म. मंत्र में द देश उपने म मर्व में मःम ३. उपने नजरेने नारकी ए ऐसे जा. यावत ने वैमानका ।
सत्र
भगवती)
वजइ, नोदेसेण सव्वं उववजइ, णोसवेणं देख उवरजइ, सवेणं सव्वं उववजइ ।। जहा नेरइए, एवं जाव वैमाणिए ॥ 1 ॥ नेरइएणं भंते ! नेरइएसु उववजमाणे
भावार्थ
है. अहो भगवन : नारकी म उतन होता * हवा जीव क्या अपने देश मे नारकी का देशपने उत्पन्न होता है। क्या अपना एक देश से तारकीका सगिपने उत्पन्न होता है ? क्या अपना सर्वांग से नारकी का एक दशपने उत्पन्न होता है? अथवा क्या अपना सांग मे नारकी का मागपने उत्पन्न होता है ? अहो गौतम : नारकी में उप माता जीव देश मे देश नहीं उत्पन्न होता है, देश से सर्व नहीं । उत्पन्न होता है, सर्व से देश नहीं उत्पत्र हो है, परंतु सर्व में मर्व उत्पन्न होता है अर्थात मंपूर्ण जीव नारकी के सशंगपने उत्पन्न होता है. जैसे नरकका कहा है वैसे ही अमुर कुमारादिक से वैमानिक तक के सब दंडक का कहना।।१॥ अहो भगवन् ! नारकी में उत्पन्न होता जीव क्या अपना देश से देश का
पहिला शतक का मानका उद्देशा
___ * यहांपर उत्पन्न होताहुवा कहनस उत्पन्नहुवा ऐसाही जानना. क्योंकी नारकीके आयुप्यका उदय होनेमे अन्य यिंचादिकके आयुप्यका अभाहै
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