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PA पंचमांग विवाह पण्णत्ति (भगवती ) सूत्र
.से तेण?णं गोयमा ! एवं वुच्चइ-जाव आहारति ॥ एवं जाव वेमाणिया आहारेति
॥ २ ॥ जाहेणं भंते ! सक्के देविंदे देवराया दिन्वाइं भोगभोगाइं भुंजित्तुकामे भवइ से कहमिदाणि पकरेति ? गोयमा ! ताहे चवणं से सक्के देविंदे देवराया एगं
महं णेमि पडिरूवगं विउन्वइ, एगं जोयण सयसहस्सं आयाम विक्खंभेणं है तिष्णि जोअणसय सहस्साई जाव अखंगुलंच विसेसाहिए परिक्खेवेणं तस्सणं
मि पाडरूवस्स उवरिं बहुसमरमणिले भूमिभागे पण्णत्ते, जाव मणीणं फासे; तस्सणं णेमि पडिरूबगस्स बहुमझदेसभागे तत्थणे महं एगे पासायवडिंसगं विउन्वति इस कारन से ऐमा कहा गया है कि नारकी वीचि द्रव्य का आहार करते हैं और अवीचि द्रव्य का आहार भी करते है, ऐसे ही वैमानिक तक चौविप्त देदक का जानना ॥२॥ अब देवता के भोग आश्री प्रश्न पुछते हैं अहो भगवन् ! जब शक्र देवेन्द्र देवराजा दीव्य भोगोपभोग भोगने की वांच्छाकरे तब वह क्या करे ? अहो गौतम ! शझ देवेन्द्र को भोगोपभोग भोगने की इच्छा होती है तब नेमी के आकार से गोल चक्र का वैक्रय करते हैं उस की लम्बाइ चौडाइ एक लक्ष योजन की है ३१६२२७% जोजन व१३॥अंगुल की परिधि है. उस नेमी के ऊपर बहुत बराबर नगारे के उपर के विभाम जैसा भूमिका
भावार्थ
चउदहवा शतक का छठा उद्देशा88.