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चारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी 48 अनुवादक-बालब्रह्म
पोग्गलढिईया, कम्मोवगा, कम्मणिदाणा, कम्मट्टिईया, कम्मुणा चेव विप्परियासमेति, एवं जाव वेमाणिया ॥ १ ॥णेरइयाणं भंते ! किं वीचिं दन्वाइं आहारैति अवीचिं दवाई आहारेति ? गोयमा ! पोरइया वीचिदव्वाइंपि आहारेति अवीचिवाईपि आहारेति ॥ से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ-णेरइया वीचि चव आहारैति ? गोयमा ! जेणं णेरइया एगपदेसूणाईपि दव्वाइं आहारेति तेणं णेरइया वीचिदवाइं आहारैति,
जेणं गेरइया पडिपुपणाई दबाई आहारैति, तेणं णेरइया अवीचिदव्वाइं आहारैति, निमित्त अथवा कर्म बंध निमित्त जिन को होता है सो कर्म निदान, कर्म पदल से जिन को स्थिति है कर्म स्थितियाले नारकी कर्म से ही पर्यायंतर को प्राप्त होते हैं. ऐसे ही वैमानिक तक जानना ॥१॥ अहो भगवन् ! नारकी क्या बीचि द्रव्य का आहार करते हैं या अवीचि द्रव्य का आहार करते हैं , अहो गौतम : नारकी वीचिद्रव्य का भी पाहार करते हैं और अधीचि द्रव्य का भी आहार करते हैं. अहो भगवन् ! किम कारन से ऐसा कहा गया है कि नारकी वीचि द्रव्य का आहार करते हैं औ अवीचि द्रव्य का भी आहार करते हैं ? अहो गौतम ! जिस द्रव्य का आहार करने का होवे उसमें एक प्रदेश की कमी रहजाय तो वीचि द्रव्य का आहार और संपूर्ण आहार करे तो अवीचि द्रव्य. अहो मौतमी
•ाशक राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी .
भावार्थ
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