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सूत्र
भावार्थ
* पंचमांग विवाह पण्णति ( भगवती ) सूत्र
तएवा, पल्लंघेत्तएवा ? गोयमा ! णो इणट्ठे समट्टे || देवेणं भंते ! महिदिए जाव महेसक्खे बाहिरए पोग्गले परियाइत्ता पभू तिरिय जाव पलूंघेत्तएवां ? हंता पभू ॥ सेवं भंते भंतेत्ति ॥ चउदसम सयस्सय पंचमो उद्देसो सम्मत्तो ॥ १४ ॥ ५ ॥
रायगिहे जाव एवं वयासी- णेरइयाणं भंते ! किमाहारा किं परिणामा किं जोणिया, किं ठिईया ? गोयमा ! णेरइयाणं पोग्गलाहारा पोग्गल परिणामा, पोग्गल जोपिया,
{ तीर्च्छा पर्वत अथवा तीच्छी भिति क्या उल्लंघने को समर्थ है ? हां गौतम ! वह उल्लंघने को समर्थ है. { अहो भगवन् ! आप के वचन सत्य हैं. यह चौदहवा शतक का पांचवा उद्देशा पूर्ण हुवा ॥ ४४ ॥ ५ ॥ पांचवा उद्दशे में अग्नि काया का कथन किया. छठे उद्देशे में आहार का कथन करते हैं. राजगृही नगरी { के गुणशील उद्यान में श्री श्रमण भगवंत महावीर स्वामी को वंदना नमस्कार कर श्री गौतम स्वामी पुछने लगे कि अहो भगवन् ! नरक के जीवों को कौनसा आहार है, आहार किये पीछे क्या परिणमन है, कैसी (योनि (उत्पत्ति स्थान ) है, और कैसी स्थिति है ? अदो गौतम ! नारकी को पुद्गल का आहार होता पुद्र का परिणमन होता है, शीत ऊष्णमय पुद्गल की योनि है, और आयु:कर्म रूप पुद्गल की स्थिति किस कारने से पुल स्थिति होती है सो कहते हैं ज्ञानावरणियादि पुद्गल रूप को जाते हैं. नरक पना
4+ १०३ चउदहवा शतकका छठा उद्देशा
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