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________________ 4 अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषीजी ... बेइंद्रिया.. सत्तट्ठाणाई । पन्नावभवमाणा विहरंति, तंजहा-इट्ठाणि? रसा मेसं जहा एगिदिया ॥ तेइंदिया अट्ठाणाइं पञ्चणुब्भवभाणा विहरंति, तंजहा-इट्ठाणि? गंधा सेंसं जहा बेइंदियाणं ॥ चउरिंदियाणं नवट्ठाणाई पच्चणुब्भवमाणा विहरंति, तंजहा इट्ठाणि?रूवा सेसा जहा तेइंदियाणं ॥ पचिंदिय तिरिक्ख जोणिया दसट्टाणाई पच्चणुब्भवमाणा विहरंति, तंजहा-इट्ठाणि? सद्दा जाव परक्कमे ॥ एवं मणुस्सावि ॥ वाणमंतर जोइसिय वैमाणिया जहा असुरकुमारा ॥ ५ ॥ देवेणं भंते ! महिड्दिए जाव महेसक्खे बाहिरए पोग्गले अपरियाइत्ता पभू तिरियपव्वयंवा, तिरियभित्ति, वा उलंघेअनुभवते हुवे विचरते हैं. दृष्टाइष्ट स्पर्श इष्टाइष्ट गति यावत् इष्टाइष्ट उत्थान कर्म बल वीर्य पुरुषात्कार पराक्रम ऐसे ही वनस्पतिकाया तक कहना. बेइन्द्रिय में सात, तेइन्द्रियमें आठ, चतुगेन्द्रिय में नव और तिर्यंच पंचेन्द्रियमें दश स्थान कहे हैं उनमें अनुक्रमसे रम,गंध,रूप व शब्दकी वृद्धि करना. मनुष्यका तिर्यंच पंचेन्द्रिय जैसे कहना. वाणव्यंतर, ज्योतिषी व वैमानिक का असुरकुमार जैसे कहना ॥५॥ अहो भगवन् महर्दिक यावत् महा मुखवाला देव बाहिर के पुद्गल ग्रहण किये विना तीर्छा पर्वत या तीछी भीत उल्लंघने को क्या समर्थ है? अहो गोतम ! यह अर्थ योग्य नहीं है. अहो भगवन् ! महर्दिक यावत् महा मुखवाला देव वाहिर के पुद्गल ग्रहण करा प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेव सहायजी ज्वालाप्रसादजी. भावार्थ
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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