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जोइसियवेमाणिए जहा असुरकुमारे ॥ २ ॥ जेरइया दसटाणाई पञ्चणुष्भवमाणा विहरंति, तंजहा-अणिट्ठा संहा, अणिट्ठा रूवा, अणिट्ठा गंधा, अणिट्ठा रसा, अणिट्ठा फासा अणिटागई, अणिट्ठाठिई, अणिटे लायण्णे, अणिटे जसोकित्ति, अगिट्टे उट्ठाण कैम्मबलबीरिय पुरिसक्कार परक्कमे ॥ ३ ॥ अमुरकुमारा दसट्ठाणाई पञ्चणुभवमाणा विहरलि, लजहा-इट्ठा सहा, इट्ठा रूवा, जावइटे उट्ठाणकम्मबलवीरिय पुरिसक्कार परिक्कमे, एवं अव थणियकुमारा ॥४॥ पुढवीकाइया छट्ठाणाई पच्चणुब्भवमाणा विहरति तंजहा
इट्ठाणि? फासा, इट्ठाणिटुंगई, एवं जाव परक्कमे ॥ एवं जाव वणस्सइ काइया ॥ भाबर्थ और कितनेक नहीं जा सकते हैं. तियेच पंचेन्द्रिय जैसे मनुष्य का कहना. वाणयंतर, ज्योतिषी व वैमः
निक का असुरकुमार जैसे कहना ॥ २ ॥ नारकी दश स्थान अनुभवते हुवे विचरते हैं. १ अनिष्ट शब्द, १२ अनिष्ट रूप, ३ अनिष्ट गंध, ४ अनिष्ट रस, ५ अनिष्ट स्पर्श, ६ अनिष्ट गति, ७ अनिष्ट स्थिति, ८ अ-3 निष्ट लावण्य, ९ अनिष्ट यशोकीर्ति और १० अनिष्ट उत्थान कर्म, बल, वीर्य, पुरुषात्कार व पराक्रम ॥३n
अमुरकुमार दश स्थान अनुभवते हुवे रहते हैं. इष्ट शब्द इष्ट रूप यावत् इष्ट उत्थान कर्म बल वीर्य पुरुषासंस्कार पराक्रम. ऐसे ही स्थनित कुमार तक दश मुवनपवियों का जानना ॥ ४॥ पृथ्वीकाय छ स्थान"
पंचमांगविवाह पण्णति ( भगवती ) सूत्र +8+
बदहवा शतक का पांचवा
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