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मनि श्री अमोलक ऋषिजी'
नकाशक-राजाबादुरलालामुखद
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गइ समावण्णगा पंचिदिय लिरिक्ख जोणिया दुविहा पण्णत्ता, तंजहा-इढिप्पचाय अणिढिप्पत्ताय॥ तत्थणं जे से इढिप्पत्ते पंचिंदिय तिरिक्खजोगिएणं सेणं अत्थेगइए अगणिकायस्स मझमझेणं वीईवएज्जा, अत्थेगइए णो वीयीवएज्जा । जेणं वीईवएज्जा, सेणं तत्थ ज्झियाएजा ? णो इणटे समटे । णो खलु तत्थ सत्थं कमइ, तत्थणं जे से अणिढिप्पत्ते पंचिंदिय तिरिक्ख जोणिए सेणं अत्थेराइए अगणिकायस्स मझं मझेणं वीईवएजा, अत्थेगइए जो वीईवएज्जा जेणं वाईवएजा सेणं तत्थ झियाएज्जा? हंता झियाएजा- से तेपट्टेणं जाव णो झियाएज्जा । एवं मणुस्सेवि ॥ वाणमंतर अहो गौतम ! पंचेन्द्रिय तिर्यंच के दो भेद कहे है विग्रह गतिवाले और अविग्रह गातेवाले. विग्रहगतिवाले तिर्यंच पंचेन्द्रिय का नारकी जैसे कहना. और अविग्रह गतिवाले के दो भेद ऋद्धिवाले और ऋद्धि रहित. उन में ऋद्भिवाले तिर्यंच पंचेन्द्रिय में कितनेक जा सकते हैं और कितनेक नहीं जा सकते हैं. जो जा सकते हैं व वहां जलते नहीं हैं क्यों कि उन को शस्त्र नहीं लगता है और जो ऋदि राहेत हैं उन में से कितनेक अनिकाया की बीच में होकर जा सकते हैं और कितनेक नहीं जा सकते हैं. जो जा सकते हैं के वहां जलते हैं. अहो गौतम! इस कारन से पेमा कहा गया है कि: कितनेक जा सकते हैं।
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भावार्थ
4. अनुवादक-बालब्रह्मर
हायजी ज्वालामसादी