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________________ १९३२ से तेण?णं णो वीईवएज्जा ॥ १ ॥ असुरकुमारणं भंते! अगणिकाय पुच्छा ? गोयमा! अत्थेगइए वीईवएज्जा, अत्थेगइए णो वीईवएजा ॥ से केणटेणं जाव जो बीईवएजा ? गोयमा ! असुरकुमारा दुविहा पण्णत्ता, तंजहा-विग्गहगइ समावण्ण. गाय, अविग्गहगइ समावण्णगाय ॥ तत्थणं जेसे विग्गहगइ समावण्णए अमुरकुमारे सेणं जहेव णेरइए जाव कमइ, तस्थणं जे से अविग्गहगइसमावण्णए असुरकुमारे सेणं अत्थेगइए अगणिकायस्स मझमझेणं वीईवएज्जा, अत्यंगइए णो वाईबएजा, जेणं वीईवएजा सेणं तत्थ झियाएजा ? णोइण? समटे ॥ णो खलु तत्थ सत्थं कमइ, भावाथ Eहोकर जासकते हैं और कितनेक नहीं जासकते हैं. ॥ १ ॥ अहो भगवन् ! क्या असुरकुमार अनि काय E की बीच में ोकर जासकते हैं ? अहों गौतम ! कितनेक जासकते हैं और कितनेक नहीं जासकते हैं.. अहो भगवन् ! किप्त कारन से ऐमा कहा है कि कितनेक जा सकते हैं और कितनेक नहीं जा सकते हैं ? अहो गौतम ! अमुरकुमार के दो भेद कहे हैं, विग्रहगतिवाले और अविग्रहगतिवाले. जो विग्रहगतिवाले है वे नरक की तरह अनिकाया की बीच में से जा सकते हैं, और इस से जलने नहीं हैं, क्यों कि शखका आक्रमण उन को नहीं होता है, जो अविग्रहगतिवाले हैं उन में से कितनेक जा सकते हैं और किसनेक अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी + • प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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