________________
- अचरिमे, खेत्तादेसेणं सिय चरिमे सिय अचरिमे, कालादेसेणं सिय चरिमे सिय
अचरिमे, भावादेसेणं सिय चरिमे सिय अचरिम ॥ ६ ॥ कइविहेणं भंते ! परिणामे पण्णत्ते ? गोयमा ! दुविहे परिणामे पण्णत्ते, तंजहा जीव परिणामेय अजीव परिणामेय एवं अजीवपरिणामपयं णिरवसेसं भाणियव्वं ॥ से भंते भंतेति ॥ जाव विहरइ ॥ चउद्दस सयस्सय चउत्थओ उद्देसो सम्मत्तो ॥१४॥४॥ णेरड्याणं भंते ! अगणिकायस्स मज्झमझेणं वीईवएजा ? गोयमा ! अत्थेगइए
वीईवएजा अत्थेगइए णो वीईवएजा ॥ से केणटेणं भंते ! एवं बच्चइ-अत्थेगइए द्रव्य आश्री चरिम नहीं है परंतु अचरिम है, क्षेत्र आश्री क्वचित चरिम क्वचित् अचरिम, काल आश्री क्वचित् चरिम क्वचित् अचरिम, भाव आश्री क्वचित् चरिम क्वचित् अचरिभ है. ॥ ६॥ अहो भगवन ! परिणाम के कितने भेद कहे हैं ? अहो गौतम ! परिणाम के दो भेद कहे हैं जीव परिणाम और अजीव
परिणाम ऐते पन्नवणा पद का परिणाम पद यहां जानना. अहो भगवन् ! आप के वचन सत्य हैं. यह के चौदहवा शतक का चतुर्थ उद्देशा पूर्ण हुवा ॥ १४ ॥ ४॥ . । यत्र उदेशे में परिणाम का अधिकार कहा. अब इस उद्देशे में, परिणाम के अधिकार से न्यतिव्रजादिक ।
२१ अनवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
• प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदवसहायजी ज्वालाप्रसादजी*