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________________ भावार्थ पंचमाङ्ग विवाह पण्णति (भगवती) मूत्र + एस भंते! पोग्ग़ले तीतमणंतं सासयं समयं लुक्खी समयं अलुक्खी समयं लक्खीया अलक्खीवा पुव्विं चर्ण करणेणं अणेगवण्णं अणेगरूवं परिणामं परिणमइ, अहे से परिणामे णिजिण्णे भवइ, तओ पच्छा एगवण्णे एगरूवे सिया ? हंता गोयमा ! एसणं पोग्गले तीतं तंचेव जाव एगरूवे सिया ॥ १ ॥ एसणं तीसरे उद्देशें में पुल परिणाम कहा आगे चौथे उदेशे में भी पुल काही कथन करते हैं. अहो भगवन् ! यह पुद्गल परमाणु अथवा स्कंधरूप अनंत अतीत काल में परिणाम से, तथा शाश्वत में अक्षय से, समय काल में एकममय पर्यंत रूक्ष स्पर्श से, तथा एक समय स्निग्ध स्पर्श वंत हुवा तथा समय में ही रूक्ष ( तथा स्निग्ध रूक्ष दोनों स्पर्शत हुवा एक वर्णादि परिणाम से प्रथम प्रयोग करण से तथा वीसा करण {से अनेक वर्ण कृष्ण नीलादि वर्णों के भेद से अनेक रूप गंध रस स्पर्श व संस्थान के भेदों से परिणाम के पर्याय परिणमे अतीत काल विषम काल पता से परिणमा हुवा ऐसा कहना. अब अनंतर वह परमाणु) अथवा स्कंध का अनेक वर्णादि परिणाम क्षीण होता है तब फीर निर्जरण के अनंत २ एक वर्ण एक रूप विवक्षित गंधादि पर्याय की अपेक्षा से पर पर्याय के त्याग से ऐसा पुगल क्या हुआ ? हां गौतम ! यह पुद्गल अतीत काल में यावत् एक रूप होवे ॥ १ ॥ अहो भगवन् ! वर्तमान काल में शाश्वत समय में यावत् 4 चउदहवा शतक का चौथा उद्देशा 498 १९२७
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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