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अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी 8
भाणियव्वा जाव महाड़ियावेमाणिणी अप्पडिया वैमाणिणीए ॥ ९॥ रयणप्पभा पुढवी गेरइयाणं भंते ! केरिसयं पोग्गलपरिणामं पच्चणुब्भवमाणा विहरंति ? गोयमा! अणिटुं जाव अमणामं ॥ एवं जाव अहे सत्तमा पुढवी ॥ गेरइया एवं वेयणापरिणाम, एवं जहा जीशभिगमे बितिए णेरइए उद्देसए जाव अहे सत्तमापुढवी ॥१० ॥ णेरइयाणं भंते ! केरिसयं परिग्गहसण्णापरिणाम जाव पच्चणुब्भवमाणा विहरंति ? गोयमा ! अणिटुं जाव अमणामं ॥ ११ ॥ सेवं भंते भंतेत्ति ॥ चउद्दसम
सयस्सय तइओ उद्देसो सम्मत्तो ॥ १४ ॥ ३ ॥ आलापक कहना. यावत् महद्धिक वैमानिक की देवी अल्पऋद्धिवाला वैमानिक देवी की बीच में होकर जा सकती है ॥ १ ॥ अहो भगवन् ! रत्नप्रभा पृथ्वी के नारकी कैमा पुद्गल परिणाम अनुभवते हुवे विचरते
हो गौतम !. अभियावत अमेणाम दल परिणाम अनभवते हवे विचरते हैं. ऐसे ही सातवी पृथ्वी का जानना. ऐसे ही नारकी का वेदना परिणाम वगैरह जैसे जीवाभिगम के दूमरे नरक उद्देशे में कहा है वैसे ही यहां कहना ॥ १० ॥ अहो भगवन् ! नारकी कैसी परिग्रह संज्ञा अनुभवते हुवे विचरते हैं ? अहो गौतम ! अनिष्ट यावत् अमणाम परिग्रह संज्ञा परिणाम अनुभवत हुवे विचरते हैं. अहो भगवन् ! आप के वचन सत्य हैं यह चौउदहवा शतक का तीसरा उद्देशा पूर्ण हुवा ॥ १४ ॥ ३ ॥
*काशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादी
भावार्थ
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