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298 पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) मूत्र 408
देवयं जाव पज्जुवासइ, सेणं अणगारस्स भावियप्पणो मझमझेणं बाईबएजा ॥ : तत्थणं जेसे अमायी सम्माट्ठिी उववण्णए देवे, सेणं अणगारं भावियप्पाणं पासइ, :: * पासइत्ता वंदइ णमंसइ जाव पज्जुवासइ, सेणं अणग्गरस्स भावियप्पणो मझमझेणं -
णो वाईवएजा. से तेणट्रेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ-जाव णो वाईवएंजा ॥ १ ॥ असुर । कुमारणं भंते ! महाकाए महासरीरे एवं चेक ॥ एवं देव · दंडओ भाणियन्वो जाव
वेमाणिए ॥ २ ॥ अत्थिणं भंते ! णेरइयाणं-सकारेइवा, सम्माणेइवा, किइकम्मेइवा, . ...अब्भुट्ठाइवा, अंजलिपग्गहेइवा, आसणाभिग्गहेइवा, आसणाणुप्पदाणेइवा इंतस्स वे भावितात्मा अनगार को देखकर वंदना पूजा, सत्कार. सन्मान करे नहीं, वैसे ही कल्याणकारी, मंगलकारी, देव तुल्य, ज्ञानवन्त जाने नहीं और सेवा भक्ति करे नहीं. वे देवता भावितात्मा अगार की बीच में होकर जा सकते हैं. और जो देव अमायी समदृष्टि होते हैं वे भावितात्मा अनगार को देखकर
ना नमस्कार यावत् पर्युपासना करने से भावितात्मा अनगार की बीच में होकर नहीं जाते हैं. अहो मौलम। इस कारनसे एसा कहा गया है कि, कितनेक देव व्यतिक्रमे और कितनेक देव व्यतिक्रमे नहीं॥॥ अहो गौतम ! महा काया व महाशरीरवाला अमुर कुमार देव का वैसे ही जानना. ऐसे ही देव दंडक वैमानिक तक कहना ॥२॥ अहो भगवन! नारी को परस्पर सत्कार, सन्मान देना, कृतिकर्म
चउदाहवा शतकका तीसरा उद्देशा
भावार्थ