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सूत्र
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* अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिना
चउद्दसम सथस्सय बितिओ उद्देसो सम्मत्तो ॥ १४ ॥ २ ॥ देवेणं भंते ! महाकाए महासरीरे अणगास्स्स भावियप्पणो मझमंझेणं बीईवएजा ? गोयमा ! अत्थेगइया वीईवएजा अगइया णो वाईवएजा ॥ से केणटेणं १०.भंते ! एवं वुच्चइ अत्थेगइया वीईवएज्जा अत्थेगइया णो वीई एज्जा ? गोयमा ! देवा
दुविहा पण्णत्ता, तंजहा मायीमिच्छद्दिट्टीउववण्णगाय, अमायीसम्मदिट्ठीउबवष्णगायः । तत्थणं जेसे मायीमिच्छादिट्ठी उववण्णए देवे, सेणं अणगारं. भाव्यिप्पाणं
पासइ, पासइत्ता गो वंदइ णो णमसइ णो सक्कारेइ णो सम्माणेइ णो कल्लाणं मंगलं सत्य हैं: - यह चउदहवा शतक का दूसरा उद्देशा पूर्ण हुवा ॥ १४ ॥ २॥ . हर दूसरे उद्देशे में देव व्यत्तिकर कहा. आगे इस उद्देशे में भी वैसा ही कहते हैं. अहो भगवन् !. महा
कायावाला और महा शरीरवाला देव क्या भावितात्मा अगार की बीच में होकर जा सकता है ? अहो, गौतम ! कितनेक देव जा सकते हैं और कितनेक नहीं जा सकते हैं. अहो. भगवन् ! किम कारन से एसा कहा गया है कि कितनेक देव जा सकते हैं और कितनक नहीं जा सकते हैं. १ अहो गौतम । देव दो प्रकार के कहे हैं. १ मायी मिथ्यादृष्टि और २ अमायी समदृष्टिः इन में जो मायो: मिथ्यादृष्ट दर है,
प्रकाशक-राजाबहादुर लाली सुखदेवसहायजी ज्वालामसदिजी*
भावार्थ