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सूत्र
भावार्थ
* पंचमांग विवाह पण्णांचे ( भगवती ) मूत्र
समाणा एवं जहेव सकस्सा जाव तरणं ते अभिओगिया देवा सदाविया समाणा तमुकाइए देवे सदाति, तएणं ते तमुकाइया देवा सद्दाविया समाणा तमुकायं पकति एवं खलु गोयमा ! ईसाणे देविंदे देवराया तमुकायं पकरेइ ॥ ६ ॥ अत्थिणं भंते! असुरकुमारा देवा तमुकाथं प्रकति ? हंता आत्थ ॥ किं पत्तियण्णं भंते ! असुर कुमारा देवा तमुका पकति ? गोयमा ! किडारतिपत्त्रियं वा पडिणीयत्रिमोहणयाए गुतीसंरक्खणहे ओवा अप्पणोवा सरीरपच्छायणट्टयाए ॥ एवं खलु असुरकुमारा देवा तमुकायं पकरैति ॥ एवं जाव चेमाणिया ॥ सेवं भंते
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गोयमा !
भंतेत्ति ॥
यावत् आभियोगिक देवों को बोलाते हैं और वे तमस्काय देवों बोलाते हैं. अहो गौतम ! इस तरह ईशानेन्द्र तमस्काय करता है || ६ || अहो भगवन् ! असुरकुमार क्या तमस्काय करते हैं? डां [गौतम ! असुरकुमार देव तमस्काय करते हैं. अहो भगवन् ! किस कारन से असुरकुमार देव तमस्काय करते हैं ? अहो गौतम ! क्रीडा करने के लिये, रति, आनंद सुख भोगने के लिये, शत्रु को विमोह उत्पन्न करने के लिये, द्रव्य का संरक्षण करने के लिये, अथवा अपना शरीर छिपाने के लिये असुरकुमार देव तमस्काय करते हैं. ऐसे ही वैमानिक तक जानना. अहो भगवन् ! आप के बचन
उदावा शतकका दूसरा उद्देशा
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