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का अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋपिजी *
बुट्टिकायं पकरेंति ? हंता अत्थि. ॥ किं पत्तियण्णं भंते ! असुरकुमारा देवा वुट्टिकार्य पकरेंति ? गोयमा ! जे इमे- अरहंता भगवंता एएसिणं जम्मणमहिमासुवा, णिक्खमण महिमासुवा णाणुप्पाय महिमासुवा, परिणिव्वाण महिमासुवा, एवं खलु असुरकुमारा देवा बुट्टिकायं पकरेंति ॥ एवं णागकुमारावि, एवं जाव थणियकुमारा, वाणमंतर जोइसिय वेमाणिया एवं चेव ॥ ५ ॥ जाहेणं भंते ! ईसाणे देविंदे देवराया तमुकायं काउं कामे भवइ, से कहमिदाणिं पकरेति. ? गोयमा ! ताहे चेवणं ईसाणे देविंदे
देवराया आभितर परिसाए देवे सदावेइ, तएणं ते. अभितर परिसगादेवा सद्दाविया वर्षा करते हैं ॥ अहो भगवन् ! अमुर कुमार देन क्या वृष्टि करते हैं ? हां गौतम ! अमुर कुमार देव दृष्टि करते हैं अहो भगवन् ! किस कारन से असुर कुमार देव वृष्टि करते हैं. ? अहो गौतम ! जो यहां अरिहंत भगवंत होते हैं उन के जन्म महोत्सव, दीक्षा महोत्सव, ज्ञानोत्सव और निर्वाण महोत्सव में असुर कुमार देव वृष्टि करते हैं ऐसे ही नाग कुमार यावत् स्थनित कुमार, वाणव्यंतर, ज्योतिषी व वैमानिक का भी जानना. ॥ ५ ॥ अहो भगवन् ! जब ईशानेन्द्र तमस्काय करने को कामी होघे तब वह क्या करता है अहो गौतम ! ईशान देवेन्द्र आभ्यंतर परिपदा के देवों को बोलाता है. वगैरह जैसे शक्रेन्द्र का कहा वैसे
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *