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सूत्र
भावार्थ |
488+- पंचमांगविवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र 4380+
हंता अत्थि ॥ जाहेणं भंते ! सक्के देविंदे देवराया त्रुट्ठिकार्य काउं कामे भवइ कहमियाणं पकरेइ ? गोयमा ! ताहे चेवणं सक्के देविंदे देवराया अभितर परिसाए देवे सदावेइ, तरणं ते अब्भितर परिसगा देवा सदाविया समाणा मज्झिम परिसाए देवे सद्दार्वेंति, तएणं ते मज्झिम परिसगा देवा सदाविया समाणा बाहिर परिसाए देवे सद्दावेंति, तणं ते बाहिर परिसगा देवा सद्दाविया समाणा बाहिर बाहिरिगा देवा सदावेंति, तणं ते बाहिरि बाहिरिगा देवा सद्दाविया समाणा आभिओगिए देवे सद्दार्वेति, तएणं ते जाव सदाविया समाणा बुट्टिकाइए देवे सहावेंति, तएणं ते बुट्टिकाइया देवा सदाविया समाणा बुट्टिकायं पकरेंति; एवं खलु गोयमा ! सक्के. देविंदे देवराया वुट्टिकायं पकरेति ॥ ॥ अस्थि भंते ! असुरकुमारावि देवा अहो गौतम ! जब शक्र देवेन्द्र वृष्टि करने का कामी होता है तब आभ्यतंर परिषदा के देवों को बोलता {है आभ्यंतर परिषदा वाले मध्यम परिषदा के देवों को बोलाते हैं. मध्यम परिषदा वाले बाहिर की (परिपदा के देवों को बोलाते हैं. बाहिर की परिषदा वाले देवों आभियोगिक देवता को बोलाते हैं और आभियोगिक देवता वृष्टि करने वाले देवों को बोलाते हैं उस समय में बे वृष्टि कायदेव बोलाये हुवे
49* 48 चउदहवा शतकका दूसरा उद्देशा - 488+
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