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तराए चेत्र, सुहविमोयणतराए चेव ॥ तत्थणं जे से मोहणिज्जस्स कम्मस्स उदएणं सेणं दुहवेदणतराए चेव, दुहविमोयणतराए चेव ॥ १ ॥ णेरइयाणं भंते ! कइविहे उम्मादे पण्णत्ते ? गोयमा ! दुविहे उम्मादे पण्णत्ते तंजहा-जक्खानेसेय; मोहणिजस्स कम्मरस उदएणे ॥ से केण?णं भंते ! एवं बुच्चइ-णेरइयाणं दुविहे उम्मादे पण्णत्ते ? जक्खावेसेय, मोहणिज्जस्स कम्मस्स उदएणं ? गोयमा ! देवे वाले असुभे पोग्गले पक्खिवेजा, सेणं तेसिं असुभाणं पोग्गलाणं पक्खिवणयाए जक्खावेसेणं, उम्मादे
पाउणेजा, मोहणिजस्सवा कम्मस्स उदएण मोहणिजं उम्मायं पाउणेज्जा, से तेणटेणं भावार्थ सुख से छोडा जावे वैसा है. और मोहनीय कर्म के उदाय से जो उन्माद होता है वह दुःख से वेदान
जावे वैसा है और दुःख से छोडा जावे वैसा है. ॥ १ ॥ अहो भगवन् ! नारकी को कितने उन्माद कहे
? अहो गौतम ! नारकी को दोनों प्रकार का उन्माद कहा है. १ यक्षावेश से व २ मोहनीय कर्म के र उदय से. अो भगवन् ! नारकी को दोन प्रकार का उन्माद किस कारन से कहा है ? अहो गौतम?
देवताओं उन नारकी पर अशुभ पुद्गलों का प्रक्षेप करे. उन असुभ पुद्गलों के प्रक्षेप से यक्षादेश उन्माद । ३को नारकी प्राप्त झेते हैं. और मोहनीय कर्म के उदय से मोहनीय कर्म के उन्माद को प्राप्त होते हैं..
+ पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र 488
48चउदहबा शतक का दूसरा उद्देशा