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________________ भावार्थ 400 अनुवादक-बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी अणंतर परंपर खेदाणुववण्णगा ? गोयमा णेरइया एवं एएणं अभिलावणं तंव चत्तारि दंडगा भाणियव्वा ॥ सेवं भंते ! भंतेत्ति । जाब विहरइ ॥ चउद्दसमसयस्सय पढमो उद्देसो सम्मत्तो ॥ १४॥॥ * १९१६ कइविहेणं भंते ! उम्मादे पण्णत्ते ? गोयमा ! दुविहे उम्मादे पण्णत्ते, तंजहा-जक्खा वेसेय, मोहणि जस्स कम्मरस उदएणं ॥ तत्थणं जे से जक्खावेसे सेणं सुहवेदण में उत्पन्न हैं अथवा अनंतर परंपरा दुःख में अनुत्पन्न है ? अहो गौतम ! तीनों प्रकार से उत्पन्न हैं. जिन का उत्पन्न होते प्रथम समय में दुःख उत्पन्न हुवा वे अनंतर खेद उत्पन्न है, जिन को प्रथम समय सिवा अन्य समय में दःख उत्पन्न हुवा वे परंपरा खेद उत्पन्न और विग्रह गतिवाले दोनों प्रकार के खेद अनुत्पन्न हैं. इसका वर्णन पूर्वोक्त जैसे चौबीस ही दंडक आश्री जानना. अहो भगवन् ! आप के वचन सत्य हैं यावत् विचरने लगे. यह चउदहवा शतक का प्रथम उद्देशा संपूर्ण हुवा. ॥१४॥५॥ .. ..। है गत उद्देश में अनंतरोत्पन्न नरकादिक की वक्तव्यता कही. नारकी मोहवत होते हैं और मोह उन्माद कहाता है इसलिये आगे उन्माद का कथन करते है. अहो भगवन् ! उन्माद कितने प्रकार का कहा? अहो गौतम ! उन्माद के दो भेद कहे हैं. १ यक्षावेश से और २ मोहनीय कर्म के उदय से. उस में मोहनीय कर्म के उदय से जो उन्माद होता है उस मे यक्षावेश का उन्माद मुख से वेदा जावे वैसा है औ उस से यक्षावेश का उन्माद मुख से वेदा जावे वैसा है और है। .प्रकाशके राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी -
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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