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अणेतर णिग्गयाणं भंते ! जेरइया कि णेरइयाउयं पकरेंति जाव देवाउयं पकरेंति ? गोयमा ! णो णेरइयाउयं पकरेंति जाव णो देवाउयं पकरेंति ॥ ९॥ परंपरणिग्गयाणं भंते ! णेरइया किं णेरइयाउयं पुच्छा ? गोयमा ! गैरइयाउयंपि पकरेंति जाव देवाउयंपि पकरेति ॥ १० ॥ अणंतर परंपर अणिग्गयाणं भंते ! गैरइय पुच्छा? गोयमा ! णो णेरइयाउयं पकरेंति जाव णो देवाउयं पकरेंति णिरवसेसं जाव
वेमाणिया ॥३१॥णेरइयाणं भंते ! किं अणंतरखेदोववण्णगा परंपर खेदोववण्णगा भावाथे
ऐसे ही वैमानिक तक जानना. ॥ ८ ॥ अहो भगवन् ! अनैतर निर्गत नारकी क्या नरक का आयुष्य बांधते हैं यावत् देवता का आयुष्य बांधते हैं ? अहो गौतम ! नारकी का आयुष्य नहीं बांधते हैं यावत् देव का आयुष्य नहीं बांधते हैं ॥ ९ ॥ अहो भगवन् ! परंपरा निर्गत नारकी क्या नरक का आयुष्य
चते हैं. यारत् देव का आयुष्य बांधते हैं ? अहो गौतम ! मारकी का आयुष्य बांधते यावत् देव का
आयुष्य बांधते हैं.॥१०॥ अहो भगवन् ! अनंतर परंपर अनिर्गत नारकी की पुच्छा ? अहो गौतम 160 नारकी का आयुष्य यावत् देवता का आयुष्य बांधे. जैसे नारकी का कहा बैसे वैमानिक तक चौविस
दंडक का जानना ॥ ११ ॥ अहो भगवन् ! क्या नारकी अनंतर खेद [ दुःख] में उत्पन्न हैं परंपरा दुःख ।
पंचमांग विवाह पण्पत्ति (भगवती) मूत्र 428
चउदहवा शतकका पहिला उद्देशा
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