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सत्र
भावाथे
बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषीजी अनुबादक
तरुण ३० बलवन्त जु० युगवाला जा. यावत् णि निपुण सि० शिल्प शास्त्र अ० ज्ञाता आ० संकोचकर बा० हस्त १०प्रसारे ५० प्रसार कर बाहस्त आ० संकोचकरे वि० प्रसारी हुई मुमुष्टि को सा. संकोचकरे। सा० संकोचकर मु० मुष्टि का वि० प्रसारे उ० खुली अ० आंख को णि बंधकरे णि बंधकरी हुई अ० n e ___ गोयमा ! से जहा णामए केइ पुरिसे तरुणे बलवं जुगवं जाव णिउणसिप्पोवगए
आउंटियं वाहं पसारेजा, पसारियं बाहं आउंटेजा, विकिणिवा मुट्ठि साहारेजा, गति है कैसा शीघ्रगति का विषय है ? अहो गौतम ! जैसे चौथा आरा का उत्पन्न कोई पुरुष युवान, बलवन्त यावत् शिल्प कलामें निपुण होता है वह संकुचित की हुइ भुनाको लम्बी करे लम्बी की हुई भुनाको संकुचित करे, बंध मुष्टि को खुल्ली करे और खुल्ली मुष्टि को बंध करे, बंध चक्षु को खुल्ले करे और खुल्ले चक्षु बंध करे. उन की जैसी शीघ्र गति होती है वैसी नारकी की नहीं होती है परंतु इस से अधिक शीघ्र गति में नारकी नरक में उत्तन होते हैं क्यों कि नारकी एक समय दो ममय अथवा तीन समय में विग्रह, गति से उत्पन्न होते हैं * और संकचन प्रसारण में असंख्यात समय व्यतीत होते हैं. यह नरक की
* भरत क्षेत्र की पूर्व दिशा का नारकी पश्चिम दिशा में उत्पन्न होता है तब एक समय में अधो दिशा में उत्पन्न । होवे, दूसरे समय में तीर्छा और तीसरे समय में वायव्यादि विदिशा में उत्पन्न होवे. क्योंकि प्रथम समय में अधःश्रेणी ई तरफ जाता है दूसरे समय में तीर्छा पश्चिम दिशा में जावे और तीसरे समय में तीर्छा वायव्यादि कौन में जाकर उत्पन्न होवे.
समाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालामसादजी.
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