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शब्दार्थ
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. पंचमाङ्ग विवाह पण्णाचे (भगवती ) सत्र
. भगवन् भा. भावितात्मा च चरम अ० असुर कुमारावास वी० व्यतीक्रांत हुआ प. उत्कृष्ट अई असुर ए ऐसे जा० यावत् थ० स्थनित कुमारावास जोः ज्योतिषी आवास वे० वैमानिक आवास है जा. यावत् वि० विचरते हैं ॥ २ ॥णे० नारकी को भं० भगवन् क • कैसे सी० शीघ्र ग० गति कई कैसे सी० शीघ्र गति वि० विषय ५० प्ररूपा गो० गौतम से बह ज• जैसे के० कोई पु० पुरुष तools
विहरइ ॥ १ ॥ अणगारेणं भंते ! भावियप्पा चरमं असुरकुमारावासं वीइक्वंते परमं असुरएवंचव. एवं जाव. थणियकुमारावासं जोइसियावासं, एवं वेमाणियावासं
जाव विहरंति ॥ २ ॥ मेरइयाणं भंते । कह सीहा गई कहं सीहागइविसए पण्णत्ते? तात्मा अनगार चमर असुरकुमारावास को अतिक्रम कर परम असुरकुमारावास को अमाप्त बना हुवाई बीच में काल करे तो उस की गति कहां होती है और उपपात कहां होता है ? अहो गौतम ! जैसे चरम परम देवावास का कहा वैसे ही यहां जानना. ऐसे ही स्थनिन कुमारावास तक कहना वैसे ही ज्योतिषी वैनानिक' का जानना + ॥ २ ॥ अहो भगवन् ! नरक में उत्पन्न होते नारकी को कैसी श्रीप
+भावितात्मा अनगार वैमानिक सिवाय अन्य स्थान उत्पन्न नहीं होते हैं तो यहां भुवनपति ज्योतिषी का कैसे १ कथन किया ! ऐसा कोई प्रश्न करे तो पूर्व काल में भाबितात्मा अनगार थे परंतु संयम विराधना से चिराधित होगये हो
तो वे असुरकुमारादि भुवनपति में उत्पन्न हो सकते हैं. और इस अपेक्षा से यह ग्रहण किया है...
4883 चउदहवा शतकका
वाथे
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