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________________ शब्दार्थ सूत्र पंचमाङ्ग विवाह पण्णत्ति (भगवत्ती) मूत्र 2388 ॥ चतुर्दश शतकम् ॥ चचरम उ० उन्माद स. शरीर पो० पुद्गल अ. अग्नि आ• आहार सं० संमृष्ट अं० अंतर अ० अनगार के. केवली रा. राजगृह में जा. यावत् ए. ऐसा क. बोला अ० अनगार भं०३ भगवन भा० भावितात्मा च. चरम दे० देवावास वी. व्यतीक्रांत हुवा प० उपर का दे० देवाबासा को अ० अप्राप्त अं० बीच में का० काल क० करे त. उस की भ० भगवन् क० कहां ग० गति चर उम्माद सरीरे पोग्गल अगिणी तहा किमाहारे ॥ संसट्ठ मंतरे खलु, अणगारे केवली चेव ॥रायगिहे जाव एवं वयासी अणगारेणं भंते ! भावियप्पा चरमं देवावासं बीइक्कते परमं देवावासं असंपत्ते; एत्थणं अंतरालं कालं करेजा, तस्सणं भंते ! कहिं गई कहिं उववाए पण्णत्ते ? गोयमा ! जेसे तत्थ परिस्सओ तल्लेस्सा है. तेरहवे शतक में विचित्र भाव कहे. अब आगे के शतक में भी वैसे ही कहते हैं. इस शतक के दश उद्देशे कहे हैं. १ चरिम, २ उन्माद, ३ शरीर, ४ पुद्गल, ५ अग्नि, ६ आहार, ७ संसृष्ट ८ अंतर, ९ और १० केवली राजगृह नगर के गुणशील उद्यान में श्रमण भगवंत महावीर स्वामी को वंदना नमस्कार कर गौतम स्वामी पूछने लगे कि अहो भगवन् ! भावितात्मा. साधु उपपात हेतुभूत लेश्या । 48807-चौदवा शतकका पहिला उद्देशा भावार्थ + 488
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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