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शब्दार्थ
ऋषिजी - कं-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक
भावार्थ
स० समुद्धात त• वह ज० जैसे वे वेदना समुद्धात ए० ऐसे छा० छद्मस्थ समुद्धात गे० जानना ज०, जैसे प० पन्नवणा में जा० यावत् आ० आहार स० समुद्धात से वह ए. ऐसे भं• भगवन् जा. यावत् विचरते हैं ॥ १३ ॥ १०॥ .
पण्णत्ता, तंजहा वेदणा समुग्घाए एवं छाउमत्थिय समुग्धाया तव्वा, जहा पण्णवणाए जाव आहारग समुग्घायत्ति ॥ सेवं भंते भतेत्ति जाव विहरइ ॥ तेरसम
सयस्सय दसमो उद्देसो सम्मत्तो ॥ १३ ॥ १० ॥ सम्मत्त तेरसमं सयं ॥ १३ ॥ छ छद्मस्थ समुद्धात कही १ वेदना समुद्धात २ कषाय समुद्धात ३ मारणांतिक समुद्धात ४ वैक्रेय समुद्धात ५ आहारक समुद्धात और तेजस समुद्धात. इन में वेदनीय समुद्धात असाता वेदनीय कर्म आश्री वेदनीय कर्म का शातन करे२ कषाय समुद्धात कषाय नामक चारित्र मोहनीय कर्म आश्री कशाय के पुद्गलशातन करे ३ मारणांतिक ममुद्धात आयुःकर्म आश्री आयुः के पुद्गल शातन करे चक्रेय ममुद्धात, आहारक समुद्धात और तेजस समुद्धात ये तीनों नाम कर्म आश्री जानना यह न कर्म के पुद्गलों का शातन करे. इन का विशेष वर्णन पनवणासूत्र के छत्तीसवे उद्देशे जैसे जानना. भगवन् ! आप के वचन सत्य हैं यों कह कर विचरने लगे. यह तेरहवा शतक का दशवा उद्देशा समाप्त दुवा ॥ १३ ॥ १०॥ यह तेरहवा शतक समाप्त हुवा ॥ १३ ॥ .
*प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदवसहायजी ज्वालाप्रसादजी*
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