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________________ 4 शब्दार्थ43 ककितनी भगभगवन् छा छद्मस्थकी स. समुद्धात प०प्ररूपी गोगौतम छ. छछछद्मस्थ कीस. अणगारेणं भंते! भावियप्पा. केवइयाइं पभू पोक्खरिणी किच्चगयाइं रूवाइं विउवित्तए सेसं तंचेव जाव विउविरसंतिवा ॥ १७ ॥ से भंते ! किं मायी विउव्वइ अमायी विउव्वइ ? गोयमा ! मायी विउव्वइ णो अमायी विउव्वइ ॥ माईणं तस्स ठाणस्स अणालोइय एवं जहा तइयसए चउत्थुद्देसए जाव अत्थि तस्स आराहणा । १८ ॥ सेवं भंते भंतेति जाव विहरइ ॥ तेरसम सयरसय नवमो उद्देसो सम्मत्तो ॥१३-९॥ कइणं भंते ! छाउमस्थिया समुग्घाया पण्णत्ता गोयमा ! छछाउमत्थिय समुग्घाया भावार्थ अनगार कितने पुष्करणी कृत रूप करने में समर्थ है ? अहो गौतम : इस का सब अधिकार पूर्वोक्त जैसे जानना. ॥ १७ ॥ अहो भगवन् ! क्या मायी विकुणाकरे या अमायी विकुणाकरे ? अहो गौतम ! मावी विकुर्वणा करे परंतु अपायी चिकुर्षणाकर नहीं. मायी उस स्थान की आलोचना प्रतिक्रमण किये विना काल करे तो आराधक नहीं होता है और आलोचना प्रतिक्रमणकर काल करतो आराधक होता है.॥१८॥ अहो भयवन् ! आप के वचन सत्य हैं यों कहकर तप संयम से आत्मा को भावते हुवे विचरनेलगे. यह तेरहवा शतक का नववा उद्देशा पूर्ण हुआ॥ १३ ॥९॥ नववे उद्देशे में वैकेय का कथन किया वह वैक्रेय समुद्घात् से होता है इसलिये दशवे उद्देशे में समुद्र यात का कथन करते हैं. अहो भगवन् ! छद्मस्थ समुद्धात कितने प्रकार की कही ? अहो गौतम ! पंचमान विवाह पण्णत्ति ( भगवती) सूत्र १ तेरहवा शतक का दशचा उद्देशा 40% १२९
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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