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अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी +
कि० कृत्य रहा हुवा अ० आप से० शेष तं• तैसे ए० ऐसे मु० सुवर्ण पेटी र० रत्नपेटी १९ वजूपेटी व०* वस्त्रपेटी आ आभरणपेटी ए. ऐसे वि०वंशकीडा सुं तृणकीडा व चर्मकीडा के कंबलकीडा ए०ऐसे अ.लोहका भार तं० तांबा का भार त० तरुयः का भार सी० सीसा का भार हि० हिरण्य का भार मु. सुवर्ण का भार व० वजू भार ॥२॥ से वह ज. जैसे व. वाली ति होवे दो० दो पा०पांव उ० आचलंबन करके
पा. पांव अ० अधो शिरवाली चि० रहे ए. ऐसे अ. अंगार भा० भावितात्मा व. बल्गुली कि
हत्थकिच्चगएणं अप्पाणेणं सेसं तंचेव ॥ एवं सुवण्णपेडिं, एवं रयणपेडिं, वयरपेडि, है वत्थपेडिं, आभरणपेडिं ॥ एवं वियलकिडं, सुबकिडं, चम्मकिडं, कंबलकिडं ॥ एवं ___ अयभारं, तंबभारं, तउयभारं, सींसगभारं, हिरण्णभारं सुवण्णभार वइरभारं ॥ २ ॥
से जहा णामए वग्गुली सिया दोविपाए उलंबिय २ उ8 पाया अहो सिरा बनाकर स्वयं आकाश में क्या जा सकते हैं ? शेष सब आधिकार उपर्युक्त जैसे कहना. ऐसे ही मुवर्ण की संदूक ग्रहण कर जावे, रत्नों की संदूक ग्रहण कर जावे, वज्र रत्नों की संदूक ग्रहण कर जावे, वस्त्र की संदूक ग्रहण कर जावे, आभरण की संदूक ग्रहण कर जावे, ऐसे ही वंश, तृण, चमडा कम्बल, करंड को ग्रहण कर जावे. वैसे ही लोहे के भार को, तांबे के भार को. सीसे के भार को, तरुवे के भार को, रूपे के भार को, सूवर्ण के भार को और वज्र के भार को भी ग्रहण कर जावे ॥ २ ॥ जैसे वागल है।
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
मावाथे
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