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शब्दार्थ |
सूत्र
भावार्थ
4884 पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र
करने को गो० गौतम से वह ज जैसे जुट युवति को जु० युवान ह० हस्त से ह० हस्त ए० ऐसे ज० जैसे त० तीसरा शतक में पं० पांचवा उ० उद्देशा जा० यावत् णो० नहीं सं० संपत्ति से वि० विकुर्वणा की (वि० विकुर्वणा करते हैं वि० विकुर्वणा करेंगे ॥ १ ॥ मे० वह ज० जैसे के कोई पु० पुरुष हि० हिरण्य | (पेटी को ग० ग्रहण कर ग० जावे ए० ऐसे अ० अनगार भा० भावितात्मा हि० हिरण्य पेटी को ह० हस्त केवइयाई पभू केयाघडियं किच्चहत्थगयाई रुवाई विउन्वित्तए ? गोयमा ! से जहाणामए जुबतिं जुवाणे हत्थेणं हत्थं एवं जहा तइयसए पंचमोदेसए जाव णो चेवणं संपत्ती विउसुिवा, विउव्विंतिवा, विउव्विस्संतिवा ॥ जहा णामए
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पुरि हिरणपेडिंगहाय गच्छेज्जा एवामेत्र अणगारेवि भावियप्पा हिरण्णपेडिं क्या उक्त प्रकार से रज्जु का वैक्रेय बनाकर उसे अपने हस्त में ग्रहण कर आप स्वयं ऊर्ध्व आकाश क्या जा सकते हैं ? हां गौतम ! जा सकते हैं. अहो भगवन् ! भावितात्मा अनगार रज्जु घटिका के कितने रूप बनाकर जा सकते हैं ? अहो गौतम ! जैसे कोई युवान पुरुष युवति का हस्त पकडकर जावे वैसे ही सघन रूप बनाकर तीसरे शतक के पांचवे उद्देशे में कहा वह सब यहां कहना यावत् इतनी संपदा है परंतु इतने रूप गत काल में किये नहीं, वर्तमान में करते नहीं और अनागत में करेंगे नहीं ! १ ॥ {जैसे कोई पुरुष रूपे की संदूक ग्रहण करके जाने वैसे ही भावितात्मा अनगार रूपे की संदूक का वैय
4- तेरहवा शतक का नववा उद्देशा 43
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