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________________ १८९८ २१ अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी ए. ऐसे भं० भगवन् ॥ १३ ॥ ८॥ १ रा. राजगृही में जा. यावत् ए. ऐसा व. बोले से वह ज जैसे के० कोइ पु० पुरुष के. रज्जु घ० घडा गर ग्रहण कर ग. जावे एक ऐसे अ. अनगार भा० भावितात्मा के. रज्जुवाला घ० घडा कि० कृत ह० हस्त अ० आप उ० ऊर्ध्व वे० आकाश में उ० जावे ६० हां उ० जावे अ० अनगार भं० भगवन् भा० शवितात्मा के कितने ५० समर्थ के० रज्जु वाला घ० घडा कि० कृत्यहस्त रू० रूप वि० विकूर्वणा तेरसमसयस्सय अट्ठमो उद्देसो सम्मत्तो ॥ १३ ॥ ८॥ * * राजगिहे जाव एवं धयासी से जहा णामए केइ पुरिसे केयाघडियं गहाय गच्छेजा एवामेव अणगारेवि भावियप्पा केयाघडियाकिच्चहत्थगएणं अप्पाणेणं उर्ल्ड वेहासं उप्पएजा ? हंता गोयमा ! जाव समुप्पएजा । अणगारेणं भंते ! भावियप्पा विशेष वर्णन पन्नवणा सूत्र के तेत्तीसवे उद्देशे में कहा है. अहो भगवन् ! आप के वचन सत्य हैं. यह है तेरहवा शतक का आठवा उद्देशा पूर्ण हवा ॥ १३ ॥ ८॥ र आठवे उद्देशे में कर्म प्रकृति कहीं. कर्म क्षय से वैक्रेय लब्धि होती है इसलिये आगे वैक्रेय का कथन करतेहैं. राजगृह नगर के गुणशील उद्यान में श्रमण भगवंत महावीर स्वामीको वंदना नमस्कारकर श्री गौतम स्वामी प्रश्न पूछने लगे कि अहो भगवन् ! जैसे कोई पुरुष रस्ती बांधकर घटिका लेजावे. वैसे ही भावितात्मा अनगार प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदव सहायजी ज्वालाप्रसादजी* वाथा
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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