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शब्दार्थ |
सूत्र
भावार्थ
* पंचमांग वहाव पण्णति ( भगवती ) सूत्र
क० कितनी मं० भगवन् क० कर्म प्रकृति प० प्ररूपी गो० गौतम अ० आठ क० कर्म प्रकृति १० प्ररूप ए० ऐसे बं० बंध टिं० स्थिति उ० उद्देशा भा०कहना णि० निर्विशेष ज० जैसे प० पचवना में से० वह भंते ! कइविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते, तंजहा-णीहारिमेय, अणीहारिमेय, जाव नियमं अपडिक्कमे ॥ ३२ ॥ भत्तपच्चक्खाणं भंते! कइविहे पण्णत्ते ? एवं चैव. णवरं सपडिक्कमे ॥ सेवं भंते भंतेत्ति ॥ तेरसम सयस्सय सत्तमो उद्देसो सम्मत्तो ॥१३॥७॥ कणं भंते ! कम्मपगडीओ पण्णत्ताओ ? गोयमा ! अटुकम्म पगडीओ पण्णत्ताओ, एवं बंधट्ठति उद्देसओ भाणियव्वो णिरवसेसो जहा पण्णत्रणाए सेवं भंते भंतेति ॥ ( भगवन् ! पादोपगमन के कितने भेद कहे हैं ? अहो गौतम ! पादोपगमन के दो भेद कहे हैं. में मरण होवे सो निहारिन उस का निहारन होवे और २ ग्राम बाहिर अटवि वगैरह स्थान सो अनिहारिम, यह मरणवाला प्रतिक्रमण करे || ३२ || अहो भगवन् ! भक्त प्रत्याख्यान के कहे हैं ? अहो गौतम ! इस उक्त दो भेद जानना. परंतु प्रतिक्रमण सहित होवे. अहो भगवन् ! आप के वचन सत्य हैं. यह तेरहवा शतक का सातवा उद्देशा पूर्ण हुआ ॥ १३ ॥ ७ ॥ अंत में मृत्यु का कथन कहा. वह मृत्यु कर्म से होता है इसलिये कर्म का कथन करते कितनी कर्म प्रकृतियों कही ? अहो गौतम ! आठ कर्म प्रकृतियों कहीं. इस का
१ ग्राम
मरण होवे कितने भेद
सातवे उद्देशे के {हैं. अहो भगवन् !
4- तेरहवा शतक का आउवा उद्देशा
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