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पंचमाङ्ग विवाह पण्णात्त ( भगवती ) सूत्र 428+
से केण?णं भंते! एवं वुच्चइ-णेरइयदवावीचियमरणे ? णेरइयदव्वावीचियमरणे गेयमा! जंणं णेरइया णेरइयदब्वे वट्टमाणा जाइं दव्वाइं णेरइयाउयत्ताए गहियाई, बद्धाइं, पुट्ठाई, कडाई, पट्टवियाई, निविट्ठाई, अभिणिविट्ठाई, अभिरामण्णागयाइं, भवंति. ताई दव्वाइं आवीचिय मणुसमय णिरंतरं मरंतीतिकटु ; से तेणटेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ णेरइय दवावीचियमरणे. एवं जाव देव दवावीचियमरणे ॥ २१ ॥ खेत्तावीचिय. मरणेणं भंते ! कइविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! चउबिहे पण्णत्ते, तंजहा-णेरइयखेत्तावीचियमरणे, जाव देवखेसावीचियमरणे ॥ २२ ॥ से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ.
पेरइय खेत्तावीचियमरणे ? जेरइय खेत्तावीचियमरणे गोयमा ! जण्णं णेरइया । नारकीका द्रव्य आवीचिक मरण किस कारनसे कहा गया है ? अहो गौतम ! नरक द्रव्य में रहे हुवे नारकीने नारकी के आयुष्यपना से जो द्रव्य ग्रहण किये हैं, बंधन से बांधे हैं, प्रदेश प्रक्षेपण से पुष्ट (स्पर्श 0 किये हैं, अनुभाव स्थिति करने से जीव प्रदेश में स्थापन किये और उदयकी पंक्ति में आयेहुवे हैं उन द्रव्यों । को प्रतिसमय निरंतर परण मरे. अहो गौतम ! ऐसा होने से नारकी द्रव्य आवीचिक मरण कहा है. ऐसे ही यावत् देव दुव्य भावीचिक मरण का जानना. ॥२१ ॥ अहो भगवन् ! नारकी क्षेत्र आवीचिक मरण किसे
तेरहवा शतकका सातवा उद्देशा
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