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पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) मूत्र 488
भा० भाषा समय वी. व्यतीत हुइ भा० भाषा भि० भेदावे ॥ ७॥ ० कितने प्रकार की भं. भगवन्
भाषा प० प्ररूपी गो० गौतम च० चार प्रकार की भाषा प. प्ररूपी तं० जैसे स० सत्य मो. म. सत्यमृषा अ० असत्यमृषा ॥ ८ ॥ आ० आत्मा भं० भगवन् म० मन अ० अन्य म० मन णो० नहीं
पुर्विभासा भिजइ, भासिज्जमाणी भासा भिज्जइ, णो भासा समय वीइक्ता भासा भिजइ ॥ ७॥ कइविहाणं भंते ! भासा पण्णता ? गोयमा ! चउबिहा भासा पण्णत्ता, जहा सच्चा, मोसा, सच्चामोता, असञ्चामोसा ॥ ८ ॥ आता भंते ! मणे
गौतम ! भाषा पहिले नहीं भेदाती है, भापा समय व्यतीत हुए पीछे भाषा नहीं भेदाती है परंतु भाषा बोलते भाषा भेदासी है * ॥ ७ ॥ अहो भगवन् ! भाषा के कितने भेद कहे हैं ? अहो गौतम ! भाषा के चार भेद कहे हैं. सत्याभाषा, मृपा भाषा, सत्यमृपा व असत्य मृषा ॥८॥ भाषा प्रायः मन पूर्वक
कोई मन्द प्रयत्नवक्ता अभिन्न ही शब्द बोले. वह असंख्यात द्रव्यात्मक होने से व स्थूलपना से भिद्यमान १ होकर संख्यात योजन जाकर शब्द परिणाम त्याग करे. वैसे ही कोई महा प्रयत्नवक्ता ग्रहण की हुई भाषा को अवश्य
ही विसर्ग व प्रयत्न से भेद कर नीकाले. सूक्ष्मपना व बहुलपना से उस की अनंतगुनी वृद्धि होती हुइ छ दिशि में लोकान्त पर्यंत जावे. यहां पर जिस अवस्था में शब्द परिणाम हे उस अवस्था में भाष्यमानपना जानना.
तेरहरा शतक का सातवा उद्देशा
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