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________________ । १८९७ पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) मूत्र 488 भा० भाषा समय वी. व्यतीत हुइ भा० भाषा भि० भेदावे ॥ ७॥ ० कितने प्रकार की भं. भगवन् भाषा प० प्ररूपी गो० गौतम च० चार प्रकार की भाषा प. प्ररूपी तं० जैसे स० सत्य मो. म. सत्यमृषा अ० असत्यमृषा ॥ ८ ॥ आ० आत्मा भं० भगवन् म० मन अ० अन्य म० मन णो० नहीं पुर्विभासा भिजइ, भासिज्जमाणी भासा भिज्जइ, णो भासा समय वीइक्ता भासा भिजइ ॥ ७॥ कइविहाणं भंते ! भासा पण्णता ? गोयमा ! चउबिहा भासा पण्णत्ता, जहा सच्चा, मोसा, सच्चामोता, असञ्चामोसा ॥ ८ ॥ आता भंते ! मणे गौतम ! भाषा पहिले नहीं भेदाती है, भापा समय व्यतीत हुए पीछे भाषा नहीं भेदाती है परंतु भाषा बोलते भाषा भेदासी है * ॥ ७ ॥ अहो भगवन् ! भाषा के कितने भेद कहे हैं ? अहो गौतम ! भाषा के चार भेद कहे हैं. सत्याभाषा, मृपा भाषा, सत्यमृपा व असत्य मृषा ॥८॥ भाषा प्रायः मन पूर्वक कोई मन्द प्रयत्नवक्ता अभिन्न ही शब्द बोले. वह असंख्यात द्रव्यात्मक होने से व स्थूलपना से भिद्यमान १ होकर संख्यात योजन जाकर शब्द परिणाम त्याग करे. वैसे ही कोई महा प्रयत्नवक्ता ग्रहण की हुई भाषा को अवश्य ही विसर्ग व प्रयत्न से भेद कर नीकाले. सूक्ष्मपना व बहुलपना से उस की अनंतगुनी वृद्धि होती हुइ छ दिशि में लोकान्त पर्यंत जावे. यहां पर जिस अवस्था में शब्द परिणाम हे उस अवस्था में भाष्यमानपना जानना. तेरहरा शतक का सातवा उद्देशा 488
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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