________________
शब्दार्थ
4
रा. राजगृह में जा. यावत् ए. ऐसा व० बोले आ. आत्मा भं• भगवन् भा. भाषा अ० अन्य . भा० भाषा गा गौतम णो० नहीं आ० आत्मा भा० भाषा अ० अन्य भा० भाषा ॥१॥ रू० रूपी भं० भगवन् भा० भाषा अ० अरूंपी भाषा गो० गौतम रू० रूपी भा० भाषा णो० नहीं अ० अरूपी
ArAAAAAAAAAAAAAmar
१ अनवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी -
भावाथ
रायगिहे जाव एवं वयासी-आया भंते ! भासा, अण्णा भासा ? गोयमा ! णो आया भासा अण्णाभासा ॥ १ ॥ रूबी भंते ! भासा, अरूवी भासा ? गोयमा ! रूबी अब इस उद्देशे में भाषा का कथन करते हैं. राजगृह नगर के गुणशील उद्यान में श्री श्रमण भगवंत महावीर स्वामी को वंदना नमस्कार कर श्री गौतम स्वामी पूछने लगे कि अहो भगवन् ! आत्मास्वरूप क्या भाषा है! क्यों कि जीव के व्यापार से जीव को बंध मोक्ष होता है. इस लिये जीवपना से जीव ऐमा कहने को योग्य है. अथवा अन्य श्रोत्रेन्द्रिय ग्राह्यपना से भाषा है ? अहो गौतम ! आत्मा भाषा नहीं है क्यों कि भाषा पुद्गलमयी है. परंतु अन्य भाषा है ॥ १॥ अहो भगवन् ! क्या रूपी
भाषा है श्रोत्र के अनुग्रह उपघातकारिपना से कर्णाभरणवत् अथवा अरूपी भाषा है. चा से अनुपमें लभ्यमानपना से धर्मास्तिकायवत् ? अहो गौतम ! भाषा रूपी है. तुमने जो चक्षुअग्राह्य को अरूपी कहा
वह अनेकान्तिक दृष्टांत होने से यहां पर योग्य नहीं होता है. यदि ऐमा ही सर्वत्र ग्रहण किया जावे. तो
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी मालाप्रसाद जी *