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शब्दार्थ)
सूत्र
भावार्थ
42 अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
नरकावास
{चो० चौसठ अ० असुर कुमार के आ० आवास स० शत सहस्र प० प्ररूपे ॥ २० ॥ त० तत्र अ० अभीचि कुमार ब० बहुत व० वर्ष स श्रमणोपासक प० पर्याय पा० पालकर अ० अर्धमास की सं० संलेखना ती तीस भक्त अ० अनशन त० उस ठा० स्थान को अ० विना आलोचकर प० प्रति {क्रमणकर का काल के अवसर में कार कालकर इ० इस र० रत्नप्रभा पु० पृथ्वी के णि० ( मे चो० चौसठ जा० यावत् स शत सहस्र में अ० अन्यतर आ० विशेष अ० असुर कुमार आ० आवास अ० असुर कुमार पने उ० उत्पन्न हुवा त० तहां अ० कितनेक अ० असुर कुमार की ए० एक पस्योपम समणं इमी रयणप्पभाए पुढवीए णिरयपरिसामंतेसु चोयट्ठि असुरकुमारावासस्थ सहस्सा पण्णत्ता, ॥ २० ॥ एणं से अभीईकुमारे बहूइ वासाई समणोवासगं परियागं पाउणइ, पाउणइत्ता अद्धमासियाए संलेहणाए तीसं भत्ताई अणसणं २ तरस ठाणस्स अणालोइय पडिकांते कालमासे कालं किच्चा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए णिरय परिसामंतेसु चोयट्ठीए आतावा जाव सहस्सेसु अण्णयरंसि आयावा अंकुर कुमार
लाख
के वास कहे हुवे हैं ॥ २८ ॥ उस समय में अभिचिकुमारने बहुत वर्ष पर्यंत श्रमणोपासक पर्याय पालकर अर्ध मास की संलेखना से तीन भक्त अनशन का छेड़कर उस स्थान की आलोचना प्रतिक्रमण किये विना काल के अवसर में काल करके इस रत्नप्रभा पृथ्वी की पास चौसठ लाख अमुर
* प्रकाशक- राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
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