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________________ - ब्दाथगा . ग्रामानुग्राम दू० जाता जे. जहां चं चंपा न. नगरी जे. जहां कू कूणिक राजा उ० आकर कू कूणिक राजा का उ० आश्रय लेकर वि. विचरता है ॥ १७ ॥ तः तहां से वह वि० विपुल भो०० V भोग स० समृद्धि स. सन्मुख हुइ हो० थी ॥१८॥ त० तब से वह अ० अभीचि कुमार स. श्रमणो। पासक हो. था० अ० जाने जा. यावत् वि०विचरता है उ० उदायन रा० राजर्षि में त० बैरवाला हो था ॥ १९ ॥ ते. उस काल ते. उस समय में इ• इस र० रत्नप्रभा पु. पृथ्वी के णि. नरका वास में चंपाणयरी जेणेव कूणिएराया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छइत्ता कूणियं रायं उवसं. पजित्ताणं विहरइ ॥ १७ ॥ तत्थविणं से विउलभोगसमिति समण्णागएयावि होत्था ॥ १८ ॥ तएणं से अभीइकुमारे समोवासएयावि होत्था अभिगय जाव विहरइ ॥ उदायणमि रायरिसिंमि समणुबह वेरेयावि होत्था ॥१९॥ तेणं कालेणं तेणं परवस हुवा वीतिभय नगर में से अपने भंडोपकरणादि लेकर नीकला और पूर्वानुपूर्वी चलते ग्रामानुग्राम विजरते चंपा नगरी में कूणिक राजा की पास गया और कूणिक राजा का आश्रय लेकर विचरने लगा ॥ १७ ॥ क्वें पर भी अभिचि कुमार को भोगोपभोग की प्राप्ति हुई और उसे भोगवते हुवे विचरने लगे। ॥१८॥ अभिकिमार श्रमणोपासक होते हुवे व जीवाजीव का स्वरूप जानते हवे उदायन राजर्षि की 1 साय और बद्ध हुने ॥ १९ ॥ उस काल उन समय में इस रत्नमा पृथ्वी में नरक की चारों तरफ चौसठ । पंचमांग बहाव पण्णति (भगवती) सूत्र 488 तेरहवा शतक का छठा उद्देशा 9 428 88
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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