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शब्दार्थ
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सूत्र
- पंचमांग विवाह पथ्णत्ति ( भगवती) मुत्र
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लो० लोकस्थिति गो० गौतम अ० आठ प्रकार की लो० लोकस्थिनि आ० आकाश ५० प्रतिष्ठित धा० वायु वा० वायु प०प्रतिष्ठित पु० पृथ्वी पु० पृथ्वी प० प्रतिष्ठित त स था० स्थावर प्राणी अ० अजीव जी जीव प्रतिष्ठित जी जीव क० कर्म ५० प्रतिष्ठित अ० अजीव जी० जीव सं० संग्रहित जी. जीवर क० कर्म सं० संग्रहित ॥ १५ ॥ से वह के कैसे भ० भगवन् ए. ऐमा बु· कहा जाता है अ० आठ | प्रकार की जा० यावत् जी जीव क० कर्म सं० संग्रहित गो० गौतम से० वह ज० जैसे के० कोइ पुरुष
वाय पइद्विइए उदही, उदहि पइट्ठिया पुढवी, पुढवी पइट्ठिया तसा, थावरा पाणा, अजविा जीव पइट्ठिया, जीवा कम्मपइट्टिया, अजीवा जीव संगहिया, जीवा कम्म संगहिया ॥ १५ ॥ सेकेणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ, अट्टविहा जाव जीवा कम्म संगहिया ? गोयमा ! सेजहा नामए केइपुरिसे वत्थिमाडोवेइ २ ता उप्पि सिई धार से जीव है ७ जीवने अजीव ग्रहण किया, मन भाषा के पुद्गलों जीवने ग्रहण किये ८ कर्म स- 3 ग्रहीत संसारी जीव हैं. उदय में आये हुवे कर्मों के वश से जो प्रवर्तते हैं, जो जिस में रहते हैं, वे उस में प्रतिष्ठित हैं जैसे घटादि में रूप रहने से घटादि प्रतिष्ठित रूप कहाजाता है ॥ १५ ॥ अहो भगवन् ! किस कारन से आठ प्रकार की लोक स्थिति कही ? अहो गौतम : जैसे कोई पुरुष चमडे की मशक में}ga वायु भरे और फीर उस का उपर का मुख बंधे कर देवे मुब बांधकर उस मशकके मध्य भाग में |
१ पहिला शतक का छठा उद्देशा
भावार्थ
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