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शब्दाथे
पंचमाङ्ग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र
प्रमाद करना के केशीराजा प० पद्मावती सः श्रमण भ० भगवन्त म० महावीर को वै. वंदनकर ण. . नमस्कारकर जा. यावत् प० पीछे गये ॥ १५॥ त० तब मे० वह उ० उदायन राजा स० स्वयं पं०१4 पेचमष्टि लो• लोच से शेष ज जैसे उ० ऋषभदत्त जा. यावत् स० सर्व दु० दुःख ५० मुक्त हुवा lagn ॥ १६ ॥ त० तब तक उस अ० अभीचि कुमार को अ० एकदा पु० पूर्व २० रात्रि समय में कु० कुटुम्ब ।
यव्वं सामी जाव णो पमादीयव्वं त्तिकटु केसीराया पउमावईय समणं भगवं महावीरं वंदति णमंसंति वंदित्ता णमंसित्ता जाव पडिगया ॥ १५ ॥ तएणं से उदायणे राया सयमेव पंचमुट्ठियं लोयं, सेसं जहा उसभदत्तस्स जाव सव्व दुक्खप्पहीणे ॥ १६ ॥ तएणं तस्स अभीइकुमारस्स अण्णयाकयाई पुव्यरत्तावरत्तकाल समयंसि
कुटुंब जागरियं जागरमाणस्सअयमेयारूवे अज्झथिए जाव समुप्पाजत्था एवं खलु वेत महावीर को वंदना नमस्कार कर ईशान कौन में गये. सब आभरणालंकार उतार दिये और पद्मावतीने सब ले लीये. और अश्रु पूर्ण नयनों से बोली स्वामिन् ! संयम को योग्य कार्य करना प्रयाद करना न ऐमा करके के शी राजा व पद्मावती रानी श्रमण भगवंत महावीर स्वामी को वंदना नमस्कार कर यावत् } पीछ गये ॥ १५ ॥ फीर उदायन राजाने स्वयमेव पंच मुष्टि लोच किया शेष सब ऋषभदत्त जैसे कहना यावत् सब दुःखों से रहित हुवे ॥ १६ ॥ उस समय में अभिचिकुमार को एकदा पूर्व रात्रि में कुटुम्बई।
तेरहवा शतक का छठा उद्दशा
भावार्थ
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