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जब्दार्थ
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पंचांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती)त्र
ज० जमाली का एक ऐसा व० बोले भ० कहो सा० स्वामिन् कि क्या दे० देवे कि क्या १० विशेष । देवे कि किस से ते. तुमारा अ• अर्थ त०तब से वह उ० उदायन रा० राजा के० केशीराजा को ए०% ऐना ३० बोले इ० इच्छताहूं दे० देवानुपिय कु. कुत्रिकाहाट से एक ऐसे ज० जैसे ज. जमाली का - विशेष प० पद्मावती अ० अग्रकेश प. लेवे पि० प्रिय वि० वियोग दू. दूल्ह्य ॥ १४ ॥ ल. तब से०क के. केशी रा० राजा दो० दूमरी वक्त उ. उत्तर मुख से सी० सिंहासन र० स्चाचे उ. उदायन राजा निसियावेइ, निसियावेइत्ता अट्ठसएणं सोवणियाणं एवं जहा जमालिस्स एवं वयासीभण सामी किं देमो किं पयच्छामो किण्णा वा ते अटे? तएणं से उदायणेराया केसिंरायं एवं वयासी- इच्छामिणं देवाणुप्पिया ! कुत्तियावणाओ एवं जहा जमालिस्स, णवर पउमावई अग्गकेसे पडिच्छइ, पियविप्पओगओ दूसहा ॥ १४ ॥ तएणं से केसी राया
दोच्चंपि उत्तरावक्कमणं सीहासणं रयावेइ, रयावइत्ता उदायणं रायं सीयापीतएहिं कल वन राजा को पूर्वाभिमुख से बैठाकर एक सो आठ सुवर्ण कलशादि से जमाली की तरह महोत्सव किया. 300
फीर केशी राजा बोले अहो स्वामिन् ! कहो कि आपको क्या देवे या आप को किस से प्रयोजन है? ७ तब उदायन राजा केशी राजा को ऐसा बोले कि अहो देवानुप्रिय ! कृषिक की दुकान से ओघे पाये.
वगैरह सब कथन जमाली जैसे कहना. विशेष में पद्मावतीने अग्रकेश लीये और प्रिय का वियोग से ।
तेरहवा शंतक का छठा उद्देशा
भावाथ