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शब्दाथ थिरारजी दो० दूसरी वक्त को कौटुम्बिक पुरुषों को स० बोलाकर एक ऐसा व० बोले खि• शीघ्र
दे देवानुभिय के केशी कु० कुमार का म• महा अर्थ वाला र राज्याभिषेक ज• जैसे सि० शिवभद्र। कुमार को त० तैसे भा० कहना जा. यावत् प० उत्कृष्ट आयुष्य षा० पालो इ. इष्ट जनसे सं० घेरायॐ हुवे सिं सिंधु सो० सौवीर पा० प्रमुख सो० सोलह ज० देश वी वीतिभय पा० प्रमुख ति. तीन ते. तसठ ण. नगर आ. आगर स० शत म० महालेन पा० प्रमुख द० दश रा० राजा के अ. अन्य व बहुत रा० गजा ई० ईश्वर जा० यावत् का० करते पा० पालते वि० विचरो ति ऐसा करके ज० जय
एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पियो ! केसिस्स कुमारस्स महत्थं एवं रायाभिसेओ जहा सिवभद्दस्स तहेव भाणियव्यो जाव परमाउं पालयाहिं, इट्ठजण संपरिवुडे सिंधुसोवीरप्पाभोक्खाणं सोलसण्हं जणवयाणं वीइभयप्पामोक्खाणं तिष्णि तेसट्ठीणं णगरागरसयाणं महसेणप्पामोक्खाणं दसण्हं राईणं अण्णेसिंच बहूणं राईसर जाव
कारेमाणे पालेमाणे विहराहि त्तिकटु जयजय सदं पउंजंति ॥ तएणं केसीकुमारे भावार्थ और के हने लगे कि अहो देवानुप्रिय ! केशीकुमार के लिये महाअर्थ वाला यावत् राज्याभिषेक करो. उस का
ॐ वर्णन शिवभद्र जैसे जानना, यावत् परम आयुष्य पालो. इष्ट जनों साथ परवरे हुवे सिन्धु सौवीर प्रमुख
सोलह देश, चीतिभयं प्रमुख तीन सो वेसठ नगर को व महासेन प्रमुख दश राना व अन्य अनेक राजेश्वर है।
पंचमाङ्ग विवाह पण्णक्ति (भगवती) मूत्र
तरहवा शतकका छठा उद्देशा