________________
88
शब्दार्थ राज्य में मा. यावत् ज० देश में मा० मनुष्य के मा० काम भोग में मु० मूच्छित गिल यूद गई।
बंधाया हुवा अ० अध्यक्साय अ. अनादि अ० अनंत दी. दीर्घ काल चा० चातुरंत सं० संसार. कतार को अ० भ्रमण करेगा त• इसलिये णो० नहीं मे• मुझे से श्रेय अ० अभीचिकुमार को २० राज्य में उ० स्थापकर स० श्रमण भ• भगवन्त म० महावीर की जा० यावत् १० मवा अंगीकार करने को से० श्रेय मे० मुझे णि• अपना भा० भाणजा के• केशीकुमार को २० राज्य में ठा० स्थापकर स• श्रमण भ. भगवन्त म. महावीर की जा. यावत् ५० प्रवा अंगीकार करने को ए. ऐसा सं०
रज्जे ठावेत्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स जाव पब्वइत्तए, सेयं खलु मे णियगं भाइणिजं केसीकुमारं रज्जे ठावेत्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स जाव पव्वइत्तए, एवं संपेहेइ, संपेहेइत्ता जेणेव वीइभए णयरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छइत्ता बीइभयं णयरं मझं मझेणं जेणेव सए गेहे जेणेव बाहिरिया उवट्टाणसाला तेणेव
उवागच्छइ, उवागच्छइत्ता अभिसेकं हत्यि ठावेइ, अभिसेकाओ हत्थीओ पञ्चोरुभइ, भावार्थ चतुर्गतिक भंसार में परिभ्रमण करेगा. इस से अभीचि कुमार को राज्याभिषेक कराके श्रमण भगवंत 66 महावीर स्वामी की पास मब्रजित होना मुझे श्रेय नहीं है परंतु केशी कुमार को राज्य देकर दीक्षा
अंगीकार करना मुझे श्रेय है. ऐसा विचार कर बीविभय नगर की मध्य बीच में होकर अपने गृह में ।
पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र
- बेरहवा शतक का छठा उद्देशा 4884