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शब्दार्थ
4.2 अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
घ. धर्म कथा ॥१०॥ ० तब से वह उ. उदायन रा० राजा म० श्रमण भ. भगवन्त म.. महावीर की अं० पास ध० धर्म सो सुनकर णि० अवधारकर ह. हृष्ट तुष्ट उ० स्थान से उ० उठे उ० उठकर स० श्रमण भ० भगवन्त म. महावीर को ति तीनवक्त जा. यावत् ण० नमस्कारकर ए. ऐसा व..बोला ए. ऐसे ए. यह भ० भगवन् जा. यावत् से वह ज. जैसे तु. तुम व. कहते हो त्ति ऐसा करके जं. जो. ण विशेष दे० देवानुप्रिय अ. अभीचि कुमार को र० राज्य में ठा० स्थापकर त० तब
क्खाओ देवीओ तहेव पज्जुवासंति धम्मकहा ॥ १० ॥ तएणं से उदायणे राया है १ समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्म सोच्चा णिसम्म हट्ट तुट्ट उट्ठाए उद्वेइ, है है उढेइत्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो जाव णमंसित्ता एवं व्यासी एवमेयं भंते !
तहमयं भंते ! जाव से जहेयं तुझे वदह त्तिकटु जं, णवरं देवाणुप्पिया ! अभीइ
कुमारं रज्जे ठावेमि तएणं अहं देवाणुप्पियाणं अंतिए मुंडे भवित्ता जाव पव्वयामि ॥९॥ वीर स्वामीने उस महती परिषदा में धर्मकथा सुनाइ ॥ १० ॥ उस समय में उदायन राजा श्रमण भगवंत महावीर स्वामी से धर्म सुनकर हृष्ट तुष्ट हुवा. अपने स्थान से उठकर खडा हुवा और श्रमण भगवंत महावीर को हस्तद्वय जोडकर तीन आवर्त प्रदक्षिणा देकर बोला कि अहो भगवन् ! जैसे तुम कहते हो वैसा ३ है. विशेष में अभिचि कुमार को राज्य पर स्थापकर (राज्याभिषेक कर) के मैं आप की पास मुंड
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प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादी *
भावार्थ