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ज्ञब्दार्थ जा० यावत् वि० विवरते हैं ॥ ८ ॥ Do परिषदा प० पर्युपासना करे ।। ९ ।। त० तब से
सूत्र
भावार्थ |
48 पंचमांग विवाह पण्णन्ति ( भगवती ) सूत्र
वीतभय वह उ०
नगर में सिं० शृंगाटक जा० यावत् प रा० राजा इ० इस क० कथा को ल०
तुडु,
[प्राप्त होते ह० हृष्ट तु तुष्ट को० कौटुम्बिक पुरुषों को स० बोलाकर ए० ऐसा बबोला खि० शीघ्र दे० देवानुप्रिय वी० वीतभय नगर को स० आभ्यंतर बाबा ज जैसे कूः कूणिक उ० उबवाइ में जा० यावत् पर्युपासना करे ५० पद्मावती पा. प्रमुख दे० देवी त तैते प० पर्युपासना करे उवागच्छत्ता जाव विहरइ ॥ ८ ॥ तणं वाइभये णयरे सिंघाडग जाव परिसा पज्जुवाइ ॥ ९ ॥ तरणं से उदायण राया इसीसे कहाए लडने समाणे कोटुंबिय पुरिसे सहावे, सदावेइत्ता एवं व्यासी खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! वीतिभयं यर सब्भितर बाहिरियं जहा कृणिओउबबातिए जात्र पज्जुत्रासइ. पउमावइ पामोमें यथा प्रतिरूप अवग्रह याचकर यावत् विचरने लगे ॥ ८ ॥ तव वीतभय नगर के शृंगाटक, त्रिक, चौक यावत् राज पथ में लोकों एकत्रित होकर यावत् परिषदा पर्युपासना करने लगी ॥ ९ ॥ उस समय में उदायन राजांने यह बात सुनी और हृष्ट तुष्ट यावत् आनंदित हुवा. कौटुम्बिक पुरुषों को बोलाकर ऐसा बोले. { अहो देवानुप्रिय ! वीतिभ्य नगर को आभ्यंतर व बाहिर सब सजाइ करो. वर्णन कूणिक वंदना नमस्कार सेवा करने लगा. और प्रभावती प्रमुख रानियों भी सेवा करने लगी.
राजा तरह यावत् भगवंत श्री महा
888 तेरहवा शतकका छठा उद्देशा
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