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अनुवादक-बाल ब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी 80%
श्रमण भ० भगवन्त म. महावीर को पं० वांदू ण नमस्कार करूं जा. यावत् प० पर्युपासना करूं ॥ ७॥ त० ता स० श्रमण भ. भगवन्त म० पक्षावीर उ० उदायन र० राजा को अ० इसरूप अ. चितवन जा. यावत् स० उत्पन्न हुवा जा० जानकर चं० चंपा ण. नगरी के पु० पूर्णभद्र चे० चैत्य से पनीकलकर पु० पूर्ण च चलते मार मामालाना या विक विचरते जे. जहां सिं० सिंधु
सो. साबीर ज० देश पी. वीभद्र ण नगर जे० जहां पि० मृगवन उ• उद्यान ते० तहां उ० आकर है. मेणं जाव विहरेज्जा, तओणं अहं समणं भगवं महबीरं वंदेजा णमंसेज्जा, जाव * पज्जुबालेजा ॥ ७ ॥ तएणं समणे भगवं महावीरे उदायणस्त रणो अयमेयारूवं
अझात्वियं जाव समुप्पण्णं विजाणिन्ता; चंपाओणयरीओ पुण्णभद्दाओ चेइयाओ पडिणिक्खाइ, पडिणिक्खमइत्ता पुयाणुब्बिं चरमाणे गामाणुगामं जाव रिहरमाणे जेणेव सिंधुसोवीरे जगवथे, जेणेव वीइभये पयरे, जेणैव भियवणे उजाणे तेणेव उवागच्छइ, श्री श्रमण भगवंत महावीर को वंदना नमस्कार यावत् पर्युपासना का ॥ ७॥ उभ समय में श्री श्रमण भगवंत महावीर स्वामी उदायन राजा का मनोगत संकल्प जानकर चषा नगरी के पूर्णभद्र उद्यान में से नीकलकर पूर्वानपूर्वी चलते ग्रामानुग्राम विचरने सिन्धु सौवीर प्रदेश में वीतिभय नगर के मृगवन उद्यान
.प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदव सहायजी ज्वालाप्रसाद जी .
शशा
भावार्थ
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