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शब्दार्थ
पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) मूत्र 4
राजा ई. ईश्वर त० तलवर जा. यावत् स० सार्थवाह प० प्रमुख जे. जो स० श्रमण भ० भगवन्त म. महावीर को वं० वंदते हैं ण. नमस्कार करते हैं जा० यावत् प० पर्युपासना करते हैं ज. जो स० श्रमण भ. भगवन्त म. महावीर पु. पूर्वानुपूर्व च. चलते गा० ग्रामानुग्राम वि. विचरते इ० यहां आoor आवे इ० यहां स० पधारे इ. यहां वी. वीतिभय ण. नगर की ब. वाहिर मि० मृगवन उ० उद्यान अ० यथा प्रतिरूप उ० आज्ञा उ० ग्रहणकर सं० संयम से जा. यावत् वि० विचरे त० तब अ• मैं स०
विहरइ, धण्णाणं ते राईसरतलवर जाव सस्थाहप्पभिईओ जेणं समणं भगवं महावीरं वंदति णमंसंति जाव पज्जुवासंति ॥ जइणं समणे भगवं महावीरे पुव्वाणुपुर्वि चरमाणे, गामाणु जाव विहरमाणे, इह मागच्छेजा, इह समोसरेजा, इहेव
चीतिभयस्स णयरस्स बहिया मियवणे उजाणे अहापडिरूवं उग्गहं उगिण्हित्ता संजकरते उदायन सजा को ऐसा अध्यवसाय हुवा कि जिस ग्राम, आगर, नगर, खेड, कर्वट, मंडप, द्रोण मुख, पाटण, आश्रम, संवाह व सन्निवेश में श्रमण भगवंत महावीर स्वामी विचरते हैं उन को धन्य है। और भी राजेश्वर यानत् सार्थवाह कि जो श्री श्रमण भगवंत महावीर स्वामी की वंदना, पूजा, नमस्कार यावत् सेवा करते हैं उन को धन्य है. यदि श्रमण भगवंत ग्रामानुग्राम विचरते यहां वीतिभय नगर में मृगवन उद्यान में यथा प्रतिरूप अवग्रह याचकर संयम व तप से आत्मा को भावते हुवे विचरे तो मैं ।
तेरहवा शतक का छठा उद्देशा
भावार्थ
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