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शब्दार्थ ते. उस समय में च० चंपा ण नगरी हो० थी 40 वर्णन युक्त पु० पूर्णभद्र चे० चैत्य व० वर्णन युक्त
त० तब स० श्रमण भ० भगवन्त म० महावीर अ. एकदा पु० अनुक्रम से च० चलते जा. यावत् वि० १०० विचरते जे० जहां चं० चंपा नगरी जे? जहां पुः पूर्णभद्र चे० चैत्य ते. तहां उ० आकर जा. यावत् वि० विचरत हैं ॥५॥ ते. उस काल ते. उस समय में मि. सिंधु सौवीर ज० देश में वी०१ वीतिभय णा• नाम का ण० नगर हो० था व० वर्णन युक्त त° उस वी० वीतिभय ण नगर की ब.
चंपा णाम णयरीहोत्था वण्णओ, पुण्णभद्दे चेइए वण्णओ, ॥ तएणं समणे भगवं महावीरे अण्णयाकयाइं पुवाणुपुरि चरमाणे जाव विहरमाणे जेणेव चंपा गयरी जेणेव पुण्णभद्दे चेइए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छइत्ता जाव विहरइ ॥ ५ ॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं सिंधुसोरीरेसु जणवएसु वीतिभयणामं जयरे होत्था वण्णओ॥
तस्सणं वीतिभयरस णयरस्स बहिया उत्तरपुरच्छिमे दिसीभाए एत्थणं मियवणे णाम भावार्थ लगे ॥ ४ ॥ उस काल उस समय में चंपा नाम की नगरी थी. पूर्णभद्र उद्यान था. उस समय में श्री
श्रमण भगवन्त महावीर अनुक्रम से ग्रामानुग्राम विचरते हुवे चंपा नगरी के पूर्णभद्र उद्यान में यथा अब-clip 2 ग्रह याचकर थावत् विचरने लगे ॥५॥ उस काल उस समय में सिन्धु नदी के किनारे पर सौवीर 10 नामक देश था. उस में वीतिभय मामक नमर था. वह वर्णन योग्य था. उस वीतिभय नामक नगर की |
पंचमांगविवाह पण्णति (भगवती ) सूत्र 48862
तेरहवा शतक का छठा उद्देशा