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शब्दार्थ
48 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी +
विचरते हैं अ० अन्यत्र व. वसति में उ० आते हैं एक ऐसे गो गौतम च० चमर अ० असुरेन्द्र अ०१: अमुर राजा का च० चमर चंचा आ• आवास के केवल कि० क्रीडा र रति प. निमित्त अ. अन्यत्र व. वसति को उ० जाते हैं से वह ते इसलिये जा. यावत् आ० आवास से वह ए०. ऐसे भं० भगवन् जा. यावत् वि. विचरते हैं ॥ ३ ॥ त० तब स. श्रमण भ. भगवन्त म. महावीर अ० एकदा रा. राजगृह न० नगर से गु० गुणशील से जा• यावत् वि. विचरते हैं ॥ ४ ॥ ते. उस काल
उति, एवामेव गोयमा! चमरस्स असुरिंदस्स असुरकुमाररण्णो चमरचंचे आवासे केवलं किड्डारतिपत्तियं अण्णत्थपुण वसहि उवेति, से तेणट्रेणं जाव आवासे सेवं भंते । भंतेत्ति जाव विहरति ॥ ३ ॥ तएणं समणे भगर्व महावीरे अण्णयाकयाइं रायगि
हाओ जयराओ गुणसिलाओ जाव विहरइ ॥ ४ ॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं विशेष भोगते हुवे विचरते हैं. परंतु वहां पर निवास नहीं करते हैं. अहो गौतम ! ऐसे ही चमर असुरेन्द्र चमर चंचा आवास में केवल क्रीडा व रति सुख भोगने को ही आता हैं. उन. के निवास स्थान अन्य होते हैं. अहो गौतम ! इसी कारन से चमर चंचा आवास कहे है. अहो भगवन् ! आप के वचन सत्य हैं यों कहकर तप संयम से आत्मा को भावते हुवे भगवान् गौतम स्वामी विचरने लगे ॥३॥ फीर भगवान महावीर स्वामी राजगृह नगर में से नीकलकर गुणशील उद्यान में से जनपद में विहार विचरने ।
मकाशक राजावहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
भावाथ
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